गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
चौहदवां अध्याय
गुणत्रयविभागयोग
मां च्र योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते । जो एकनिष्ठ भक्ति योग द्वारा मुझे सेता है वह इन गुणों को पार करके ब्रह्म रूप बनने योग्य होता है। ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च । और ब्रह्म की स्थिति मैं ही हूं, शाश्वत मोक्ष की स्थिति मैं हूँ। वैसे ही सनातन धर्म की और उत्तम सुख की स्थिति भी मैं ही हूँ। ऊं तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीता रुपी उपनिषद, अर्थात व्रह्मविद्यान्तर्गत योगशास्त्र के श्रीकृष्णार्जुन- संवाद का ‘गुणत्रयविभागयोग’ नामक चौदहवां अध्याय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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