योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 59

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम


एक वर्ष बीतने पर वसुदेव ने अपने पुरोहित गर्ग को भेजा जिसने गोपनीय रूप से उनका नामकरण संस्कार कर दिया! रोहिणी के बालक का नाम बलराम और देवकी के पुत्र का कृष्ण रखा गया।

ये दोनों बालक ज्यों-ज्यों बड़े होते गये उनकी चंचलता भी बढ़ती जाती थी। इनमें कृष्ण विशेष चतुर और चंचल थे। रेंगते-रेंगते पशुओं में जा घुसते और छोटे-छोटे बछड़ों से खेला करते। दूध-दही के बर्तनों को उलट देते। जब टाँगों में थोड़ा बल आया तो इनके ऊधम ने और भी रंग पकड़ा। घर से निकल जाना, दूसरों के घरों में जाकर हँसी-मजाक करना, बछड़ों या गउओं की पूँछ खींचना इत्यादि बातें ऐसी थीं जो एक चंचल, चतुर तथा बुद्धिमान लड़के में हुआ करती हैं और जिनसे तंग आकर उनके माता-पिता या शिक्षक उन्हें ऊधमी कहने लग जाते हैं, क्योंकि उनको ऐसे चंचल लड़कों के शिक्षण का ढंग नहीं आता। वह स्वयं इसके ढंग से अनाभिज्ञ होते हैं। इस बात के अनेक प्रमाण मिलते हैं कि कृष्ण अपनी बाल्यावस्था में बड़े चंचल तथा ऊधमी थे। अपने कामों को बड़ी फुर्ती से करते थे। भय तो कभी इनके पास नहीं फटकता था। उत्तर देने तथा हँसी-मजाक में भी वैसे ही प्रवीण थे। पुराण तो इनके हँसी-ठट्ठा का यहाँ तक वर्णन करता है कि वह पड़ोसियों का दूध पी जाते थे, दही खा जाते थे और यदि इस बीच में कोई आ निकलता तो दूर सामने खड़े हो उपहास की बातें कहने लग जाते। सारांश यह कि कृष्ण अपने समकालीन बालकों से प्रत्येक बात में बढ़े-चढ़े थे। गोप बालकों की मंडली में बैठे हुए या फिरते हुए भी एक विचित्र आन-बान रखते थे और अपने साथियों में नेता और बड़प्पन के रंग-ढंग दिखाते थे।

निडर ऐसे थे कि कैसी ही मरखनी गाय या साँड न डरते, भेड़ियों व दूसरे जंगली जानवरों से निर्भय वन में घूमा करते थे। यशोदा बिचारी इधर-उधर ढूँढ़ा करती, उन्हें देखते ही बिजली की तरह वे कहीं छिप जाते। कभी यमुना में जा घुसते। रात को जब सो जाते तो वह समझती थी कि आज का दिन कुशलता से बीता। इतने चंचल होते हुए भी वह सबको प्यारे लगते थे, क्योंकि एक तो वह ऐसे रूपवान थे कि सब छोटे-बड़े उनसे प्रेम रखते, दूसरे उनकी चंचलता इतनी मोहक थी, जो कठोर से कठोर हृदय को भी शांत करके हँसा देती थी। तीसरे, अपने हमजोलियों में वह सर्वप्रिय थे। उनकी बात सब मानते। उनके जुदा होना उन्हें खटकता। वह दिन-भर उन्हें अपनी हास्यप्रद बातों से हँसाया करते। नाचते ऐसे की देखने वाला हँसते-हँसते लोटपोट हो जाता। बोली ऐसी सुरीली थी कि छोटी उम्र में गड़रियों के गीत गाकर भीड़ अपने पास जमा कर लेते। कुछ बड़े होने पर वंशी बजाने में प्रवीण हो गये थे। इस सब गुणों में मिलकर उस जंगली[1] जाति को ऐसा मोहित कर लिया था कि वे उनके[2] भक्त हो गए। कृष्ण ने गड़रियों, चरवाहों, किसानों तथा जमींदारों के बीच ऐसे गुण प्रकट किए, जिससे प्रत्येक छोटा-बड़ा उनकी ओर खिंचने लगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोप
  2. कृष्ण के

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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