योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम
ये दोनों बालक ज्यों-ज्यों बड़े होते गये उनकी चंचलता भी बढ़ती जाती थी। इनमें कृष्ण विशेष चतुर और चंचल थे। रेंगते-रेंगते पशुओं में जा घुसते और छोटे-छोटे बछड़ों से खेला करते। दूध-दही के बर्तनों को उलट देते। जब टाँगों में थोड़ा बल आया तो इनके ऊधम ने और भी रंग पकड़ा। घर से निकल जाना, दूसरों के घरों में जाकर हँसी-मजाक करना, बछड़ों या गउओं की पूँछ खींचना इत्यादि बातें ऐसी थीं जो एक चंचल, चतुर तथा बुद्धिमान लड़के में हुआ करती हैं और जिनसे तंग आकर उनके माता-पिता या शिक्षक उन्हें ऊधमी कहने लग जाते हैं, क्योंकि उनको ऐसे चंचल लड़कों के शिक्षण का ढंग नहीं आता। वह स्वयं इसके ढंग से अनाभिज्ञ होते हैं। इस बात के अनेक प्रमाण मिलते हैं कि कृष्ण अपनी बाल्यावस्था में बड़े चंचल तथा ऊधमी थे। अपने कामों को बड़ी फुर्ती से करते थे। भय तो कभी इनके पास नहीं फटकता था। उत्तर देने तथा हँसी-मजाक में भी वैसे ही प्रवीण थे। पुराण तो इनके हँसी-ठट्ठा का यहाँ तक वर्णन करता है कि वह पड़ोसियों का दूध पी जाते थे, दही खा जाते थे और यदि इस बीच में कोई आ निकलता तो दूर सामने खड़े हो उपहास की बातें कहने लग जाते। सारांश यह कि कृष्ण अपने समकालीन बालकों से प्रत्येक बात में बढ़े-चढ़े थे। गोप बालकों की मंडली में बैठे हुए या फिरते हुए भी एक विचित्र आन-बान रखते थे और अपने साथियों में नेता और बड़प्पन के रंग-ढंग दिखाते थे। निडर ऐसे थे कि कैसी ही मरखनी गाय या साँड न डरते, भेड़ियों व दूसरे जंगली जानवरों से निर्भय वन में घूमा करते थे। यशोदा बिचारी इधर-उधर ढूँढ़ा करती, उन्हें देखते ही बिजली की तरह वे कहीं छिप जाते। कभी यमुना में जा घुसते। रात को जब सो जाते तो वह समझती थी कि आज का दिन कुशलता से बीता। इतने चंचल होते हुए भी वह सबको प्यारे लगते थे, क्योंकि एक तो वह ऐसे रूपवान थे कि सब छोटे-बड़े उनसे प्रेम रखते, दूसरे उनकी चंचलता इतनी मोहक थी, जो कठोर से कठोर हृदय को भी शांत करके हँसा देती थी। तीसरे, अपने हमजोलियों में वह सर्वप्रिय थे। उनकी बात सब मानते। उनके जुदा होना उन्हें खटकता। वह दिन-भर उन्हें अपनी हास्यप्रद बातों से हँसाया करते। नाचते ऐसे की देखने वाला हँसते-हँसते लोटपोट हो जाता। बोली ऐसी सुरीली थी कि छोटी उम्र में गड़रियों के गीत गाकर भीड़ अपने पास जमा कर लेते। कुछ बड़े होने पर वंशी बजाने में प्रवीण हो गये थे। इस सब गुणों में मिलकर उस जंगली[1] जाति को ऐसा मोहित कर लिया था कि वे उनके[2] भक्त हो गए। कृष्ण ने गड़रियों, चरवाहों, किसानों तथा जमींदारों के बीच ऐसे गुण प्रकट किए, जिससे प्रत्येक छोटा-बड़ा उनकी ओर खिंचने लगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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