योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम
(1) कृष्णचन्द्र को गोकुल पहुँचे अभी बहुत दिन नहीं बीते थे कि पूतना नाम की एक ‘राक्षसी’ रात को नंद के घर में घुस आई और कृष्ण को उठाकर अपने स्तन से दूध पिलाने लगी। उसके दूध में ऐसा विष भरा था कि यदि कोई दूसरा पान करता तो मर जाता, परन्तु कृष्ण ने इतने वेग से उसके स्तन को मुख में लेके खींचा कि वह चिल्ला उठी। उसकी चिल्लाहट से बहुत स्त्री-पुरुष एकत्र हो गए। इस घटना की सत्यता यों प्रतीत होती है, कि कृष्ण ‘पूतना’ नामक रोग में ग्रसित हो गये होंगे। चिकित्सा के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुत’ में ‘पूतना’ नामक एक भंयकर रोग बताया गया है जिसकी पीड़ा से छोटे बच्चे प्रायः मर जाया करते हैं।[1] (2) दूसरी बात का इस प्रकार वर्णन करते हैं कि यशोदा कृष्ण को अपने छकड़े के नीचे लिटाकर आप वस्त्र धोने चली गई। कृष्ण सो रहे थे। जब जागे और माता ना मिली तो भूख से व्याकुल हो चिल्लाने लगे और इतने जोर से लातें मारने लगे कि वह छकड़ा जिस पर घड़े इत्यादि रखे हुए थे उलट गया जिससे सब बर्तन आदि टूट गये पर कृष्ण के चोट नहीं आई और वे फिर सो गये। जब यशोदा आई तो बच्चे को सोता पाया। वह इस घटना को देख चकित हो गई। फिर उसने और नन्द ने मिलकर उन टूटे हुए घड़ों और बर्तनों की पूजा की और उन पर दही और फल-फूल चढ़ाये। पाठक वृन्द! क्या आपने नहीं सुना, कि किसी मकान की छत गिर गई और उसमें जो बालक सो रहे थे सही-सलामत सोते पाए गए। यदि ऐसी घटनाएँ खोजी जायें तो बहुत मिलेंगी जिनमें छत गिर गई हो, चारपाइयाँ टूट गई हों, उन पर सोये बालकों को कोई चोट नहीं लगी। शेष रही यह बात कि कृष्ण की लात की चोट से छकड़ा उलट पड़ा तो इसका यथेष्ट प्रमाण ही क्या है! फिर भी यह कोई ऐसी अलौकिक या असंभव घटना नहीं कही जा सकती। संभव है छकड़ा उस तरह खड़ा हो कि उस पर तनिक ठोकर लगने से वह गिर पड़ा हो, अथवा किसी पशु ने गिरा दिया हो या किसी अन्य कारण से गिर पड़ा हो। (3) तीसरी घटना[2] यह है कि एक उड़ने वाला राक्षस[3] तृणावर्त उनको लेकर उड़ गया परन्तु बालक में इतना बोझ था कि तत्क्षण भूमि पर आ गिरा। बच्चा तो बच गया पर वह स्वयं वहीं मर गया। हम प्रतिदिन ऐसी बातें देखते हैं, जिनमे परमात्मा बड़ी तत्परता से अबोध बालकों की रक्षा किया करते हैं। कई बार बालक छत से गिर पड़ा है पर उसे तनिक भी चोट नहीं आई। तात्पर्य यह है कि ये सारी घटनाएँ ऐसी हैं जिनमें से यदि कवियों की अत्युक्ति निकाल दी जाये तो उनमें असंभवता की गंध भी नहीं रह जाती और न उन्हें अमानुषी कहने का साहस पड़ता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इस घटना के विषय में पुराणों में बड़ा मतभेद है, यथा-विष्णुपुराण में लिखा है कि ‘पूतना’ ने रात को सोते हुए कृष्ण को उठाकर निज स्तन से लगा लिया और दूध पिलाने लगी। चिल्लाहट सुनकर यशोदा जागी इत्यादि। भागवत की कथा यह है कि एक दिन जब यशोदा मंदिर में विराजमान थी तो पूतना एक स्त्री का सुन्दर रूप धारण करके उसके पास जा बैठी और अपनी बातों से यशोदा को मोह लिया और चुपके से कृष्ण को उसकी गोद से अपनी गोद में ले लिया और छातियों से दूध पिलाने लगी। हरिवंश पुराण में ‘पूतना’ एक पक्षी को कहा गया है। वर्तमान समय की मिलावट का हाल इसी से प्रकट होता है कि इस घटना के बाद यशोदा को बच्चे की रक्षा के लिए टोटके-टोने कराने पड़े और मंत्र, यंत्र तथा ताबीज गले में लटकाने पड़े। कहाँ तो यह कथन कि महाराज कृष्ण ईश्वर थे और कहाँ उनकी रक्षा में टोने-टोटकों की आवश्यकता हुई। सारांश यह कि परस्पर विरोध ही इनकी असत्यता की भली-भाँति प्रकट कर देता है।
- ↑ इस घटना के स्मारक के रूप में महावन में एक कोठरी बनी हुई है जहाँ कृष्ण की मूर्ति बनाकर उस पर दो परों की छाया डाली हुई है।
- ↑ कदाचित कोई पखेरू हो।
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