योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 75

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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तेरहवाँ अध्याय
कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह


द्रौपदी के स्वयंवर का समाचार जब धृतराष्ट्र के कानों तक पहुँचा तो उसने भीष्म की सलाह से विदुर को द्रुपद के दरबार में यह कहकर भेजा कि वह वहाँ से पाण्डवों को उनकी विवाहिता पत्नी सहित ले आये। अब विदुर राजा द्रुपद के दरबार में पहुँचे और उन्होंने अपना संदेश कहा। वहाँ कृष्णचन्द्र भी मौजूद थे। द्रुपद ने विदुर से कहा कि इसकी व्यवस्था श्रीकृष्ण से लेनी चाहिए। यदि उनकी सम्मति हो कि युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डवों को अपने घर हस्तिनापुर जाना चाहिए तो मैं भेजने में कुछ हस्तक्षेप नहीं करूँगा। कृष्ण ने यही सम्मति दी कि अब पाण्डुपुत्रों को स्वदेश ही जाना चाहिए। यह सुनकर द्रुपद ने उन्हें जाने की आज्ञा दी। ऐसा जान पड़ता है कि कृष्णचन्द्र भी इस यात्रा में उनके साथ थे। वे बस हस्तिनापुर पहुँच गये। राजा धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों को शान्त करने के लिए पाण्डवों को राज्य बाँट दिया और उनसे कह दिया कि खाण्डवप्रस्थ के वन में जा बसें।

यह सुनकर पाण्डव उस वन में चले गये और वहाँ उन्होंने इन्द्रप्रस्थ नगर बसाया। पाठक! यह इन्द्रप्रस्थ वही शहर है जो आजकल दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध है। पर जहाँ पर दिल्ली बसी है वहाँ से इन्द्रप्रस्थ की बस्ती कुछ दूरी पर थी।

जब पाण्डव इन्द्रप्रस्थ में जा बसे और आनन्द से रहने लगे तो कृष्ण्चन्द्र इस धर्म के काम को सम्पूर्ण कर द्वारिकापुरी को लौट आये।

कुछ काल बीतने पर अर्जुन जब द्वारिका गये तो वहाँ कृष्ण ने उनका बड़ा सत्कार किया। राज्य के कर्मचारी और नगर के धनिक लोगों ने भी आदरपूर्वक स्वागत किया।

अर्जुन[1] अभी द्वारिका में ही थे कि वहाँ की एक पहाड़ी ‘गिरनार’ पर एक मेला लगा। इस मेले में भ्रमण करते अर्जुन ने सुभद्रा को देखा। सुभद्रा कृष्ण की सहोदरा बहन और परम सुन्दर थी। अर्जुन उसे देखकर प्रेमासक्त हो गया और टकटकी बाँधकर देखने लगा। कृष्ण भी इस भेद को समझ गये। उन्होंने हँसी-हँसी में सुना भी दिया कि- "जो रात-दिन जंगल-जंगल विचरता फिरता है उसे प्रेम-प्रहसनों से क्या काम!"

पर जब कृष्ण ने उसे बतलाया कि सुभद्रा उसकी बहन है तो अर्जुन उनसे इस बात का अनुरोध करने लगा कि उसका विवाह सुभद्रा के साथ होना चाहिए। कृष्ण भी चाहते थे कि यह संबंध हो जाये, क्योंकि वह जानते थे कि अर्जुन अपने समय का प्रसिद्ध वीर है, इससे संबंध जोड़ना अपने को गौरवान्वित करना है। पर उन्हें इस बात का भय था कि कदाचित उनके भाई-बंधु इसे स्वीकार न करें क्योंकि अर्जुन तथा अन्य पाण्डवों के जन्म के विषय में उस समय लोगों में बहुत चर्चा थी। इसलिए कृष्ण ने इन बातों की चिन्ता कर अर्जुन से कहा कि मैं निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि स्वयंवर में सुभद्रा तुम्हीं को वरेगी। क्षत्रियों में गन्धर्व विवाह की रीति है और योद्धाओं के लिए यह बात प्रतिष्ठा की समझी जाती है कि वह विवाह करने की इच्छा से अपनी प्रिया को अपहृत कर लें। अतएव यदि तुम सुभद्रा पर ऐसे मोहित हो तो तुम्हारे लिए इससे उत्तम कोई और उपाय नहीं कि तुम उसको बलात ले जाओ। फिर निश्चय ही तुम्हारा विवाह[2] उससे होगा। तत्पश्चात निश्चय हुआ कि इस बारे में पहले युधिष्ठिर की आज्ञा ले ली जाय। इसलिए एक दूत उनके पास भेजा गया। जब वहाँ से आज्ञा मिल गई तो एक दिन अर्जुन रथ लेकर सुभद्रा के रास्ते में जा बैठा। वह उसके पास से निकली तो उसको बलात उठाकर रथ में बैठा लिया और वहाँ से चले गये। जब सुभद्रा की सहेलियों ने इसकी खबर दरबार में पहुँचाई तो सब लोग आग-बबूला हो गए। फिर शिशुपाल ने शंख बजाया जिससे सारे यादव और भोज शस्त्र धारण करके इकट्ठे हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्जुन इन दिनों 12 वर्ष के लिए घर छोड़कर बनवास में था क्योंकि पाँचों भाइयों में प्रतिज्ञा हुई थी कि यदि कोई भाई किसी दूसरे की उपस्थिति में द्रौपदी के कमरे में आवे तो उसको 12 वर्ष घर त्यागना पड़ेगा। एक दिन किसी कार्यवश अर्जुन को अपने शस्त्र लेने के लिए द्रौपदी के कमरे में जाना पड़ा जबकि वहाँ युधिष्ठिर मौजूद थे। इसलिए उन्हें 12 वर्ष घर-निकाला मिला। कुछ काल तक इधर-उधर घूमकर अर्जुन द्वारिका जा पहुँचा। कृष्ण की वार्ता में इसी का संदर्भ है।
  2. याद रहे कि कृष्ण का विवाह रुक्मिणी के साथ इसी तरह हुआ था। इससे जान पड़ता है कि उस समय यह कथन क्षत्रियों में निन्दनीय नहीं गिना जाता था, क्योंकि जो कोई किसी कन्या को भगा ले जाता था वह विवाह की इच्छा से ही ले जाता था। विवाह का संस्कार किए बिना उसके पास नहीं जाता था।

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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