योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 67

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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सातवाँ अध्याय
कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध


आखिर यह कब तक संभव था कि यादव वंश के दो राजकुमार यों गोपों के वेष में छिपे रहते और कभी पहचाने नहीं जाते। कस्तूरी चाहे कितने ही वस्त्रों में क्यों न लपेटी जाय, उसकी गन्ध छिपाये नहीं छिप सकती। वैसे ही कृष्ण और बलराम का नाम-धाम भी कब तक गुप्त रह सकता था। उनकी आकृति और उनका चाल-चलन उनके वंश का परिचय देता था। उनका ऊँचा ललाट और विशाल नेत्र पुकार-पुकारकर कहते थे कि ये दोनों लड़के जन्म से गोप नहीं हैं और न दूध, घी या मक्खन बेचना इनकी जीविका है। जब इनको इस तरह रहते कुछ दिन बीत गये और उनके पराक्रम और शूरता की कहानियाँ चारों ओर फैलने लगीं तो धीरे-धीरे यह चर्चा हुई कि ये लड़के गोप नहीं हैं।

होते-होते कंस तक भी यह बात[1] पहुँच गई और उसे तत्काल यह शंका उत्पन्न हुई कि हो न हो, ये दोनों लड़के वसुदेव के हैं जो चोरी-चोरी गोपों के बीच पले हैं। कुछ ठहरकर उसको इसका विश्वास हो गया और फिर उसे यह चिन्ता लगी कि जिस तरह से हो, इन दोनों को पकड़कर यमलोक पहुँचाऊँ जिससे फिर कोई खटका न रहे। संसार के इतिहास में कंस जैसे सैकड़ों जालिमों का पता चलता है जिन्होंने राज्य के लिए अपने वंश का विघ्वंस कर डाला था। उनके क्रूर खड्ग ने न तो बच्चों को छोड़ा और न बूढ़ों को। जिन्होंने इसी तरह अपने किसी वीर शत्रु से छुटकारा पाने के लिए उनका शेर या किसी हाथी से मल्लयुद्ध कराया है। मुसलमान और राजपूतों के इतिहास में ऐसे अनेक दृष्टान्त[2] मिलते हैं। पाठक! आप जरा इन पृष्ठों को खोलिये और विचारदृष्टि से देखिए कि वह जगत-पिता जगदीश्वर कैसा न्यायकारी है और अपनी असहाय और पीड़ित प्रजा का कैसे संरक्षण करता है? वह उन्हें ऐसी सहनशीलता प्रदान कर देता है कि वे हर एक कष्ट को सहन कर अपने को बचा लेते हैं और इन पर अत्याचार करने वाले अपनी सारी शक्ति के रखते हुए भी उन्हीं के हाथों नीचा देखते हैं।

कृष्ण और बलराम का हाल सुनकर कंस को लगा कि अब मेरा अन्त आ पहुँचा। उसे अब निश्चय हो गया कि जो अगमवाणी देवकी के विवाह के समय हुई थी उसके पूरा होने का समय अब आ पहुँचा है। दुष्ट कंस! तू किस नींद में सो रहा है। तेरे क्रूर हाथ से सृष्टि को छुड़ाने वाला, तुझसे बदला लेने वाला अब आ पहुँचा। तेरी सारी युक्तियाँ उसका बाल-बाँका करने में निष्फल हुई। यद्यपि उसके वध करने की इच्छा से तूने सैकड़ों अबोध बालकों का वध कर डाला पर जिसको बचाना मंजूर था, उसे विधाता ने बचा ही लिया।

बादशाही महलों में न पलकर प्रकृति के महलों में उसने परवरिश पाई और जंगली जानवरों के पड़ोस में प्रकृति ने उसे उन कठोर बातों की शिक्षा दी जो दुष्टों के वध करने के लिए बहुत आवश्यक हैं। सारी बाल्यावस्था में वह यही शिक्षा पाता रहा कि अपने शत्रु पर दया करना धर्म नहीं। समय ने उसको दुष्टों के लिए निर्दयी बनाकर उससे वह काम कराया जिससे बचने के लिए उसके सारे भाई-बहनों का वध हुआ था। पाप और अहंकार के वश होकर कंस को कभी विचार भी नहीं हुआ कि जिसको परमात्मा बचाना चाहता है उसे दुनिया की कोई शक्ति नहीं मार सकती।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णुपुराण कहता है कि नारद ने कंस को बहकाया कि वे दोनों लड़के वसुदेव के हैं। इधर तो कंस को यों बहकाया कि जब तक ये दोनों लड़के जीवित हैं तब तक तेरा राज्य सुरक्षित नहीं, उधर कृष्ण और बलराम को बदला लेने के लिए तत्पर किया।
  2. कर्नल टॉड ने ऐसी अनेक कहानियाँ लिखी है। उनमें से एक मुकुन्ददास राठौर की है जिसको औरंगजेब ने जीवित शेर के पिंजरे में बन्द कर दिया था। जंगल का शेर राजपूतानी के बच्चे से आँख न लड़ा सका और मुकुन्ददास सही सलामत पिंजरे से निकल आया- वह भी अकेला, बिना किसी शस्त्र के शेर पर विजयी हुआ।

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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