योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
सातवाँ अध्याय
कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध
होते-होते कंस तक भी यह बात[1] पहुँच गई और उसे तत्काल यह शंका उत्पन्न हुई कि हो न हो, ये दोनों लड़के वसुदेव के हैं जो चोरी-चोरी गोपों के बीच पले हैं। कुछ ठहरकर उसको इसका विश्वास हो गया और फिर उसे यह चिन्ता लगी कि जिस तरह से हो, इन दोनों को पकड़कर यमलोक पहुँचाऊँ जिससे फिर कोई खटका न रहे। संसार के इतिहास में कंस जैसे सैकड़ों जालिमों का पता चलता है जिन्होंने राज्य के लिए अपने वंश का विघ्वंस कर डाला था। उनके क्रूर खड्ग ने न तो बच्चों को छोड़ा और न बूढ़ों को। जिन्होंने इसी तरह अपने किसी वीर शत्रु से छुटकारा पाने के लिए उनका शेर या किसी हाथी से मल्लयुद्ध कराया है। मुसलमान और राजपूतों के इतिहास में ऐसे अनेक दृष्टान्त[2] मिलते हैं। पाठक! आप जरा इन पृष्ठों को खोलिये और विचारदृष्टि से देखिए कि वह जगत-पिता जगदीश्वर कैसा न्यायकारी है और अपनी असहाय और पीड़ित प्रजा का कैसे संरक्षण करता है? वह उन्हें ऐसी सहनशीलता प्रदान कर देता है कि वे हर एक कष्ट को सहन कर अपने को बचा लेते हैं और इन पर अत्याचार करने वाले अपनी सारी शक्ति के रखते हुए भी उन्हीं के हाथों नीचा देखते हैं। कृष्ण और बलराम का हाल सुनकर कंस को लगा कि अब मेरा अन्त आ पहुँचा। उसे अब निश्चय हो गया कि जो अगमवाणी देवकी के विवाह के समय हुई थी उसके पूरा होने का समय अब आ पहुँचा है। दुष्ट कंस! तू किस नींद में सो रहा है। तेरे क्रूर हाथ से सृष्टि को छुड़ाने वाला, तुझसे बदला लेने वाला अब आ पहुँचा। तेरी सारी युक्तियाँ उसका बाल-बाँका करने में निष्फल हुई। यद्यपि उसके वध करने की इच्छा से तूने सैकड़ों अबोध बालकों का वध कर डाला पर जिसको बचाना मंजूर था, उसे विधाता ने बचा ही लिया। बादशाही महलों में न पलकर प्रकृति के महलों में उसने परवरिश पाई और जंगली जानवरों के पड़ोस में प्रकृति ने उसे उन कठोर बातों की शिक्षा दी जो दुष्टों के वध करने के लिए बहुत आवश्यक हैं। सारी बाल्यावस्था में वह यही शिक्षा पाता रहा कि अपने शत्रु पर दया करना धर्म नहीं। समय ने उसको दुष्टों के लिए निर्दयी बनाकर उससे वह काम कराया जिससे बचने के लिए उसके सारे भाई-बहनों का वध हुआ था। पाप और अहंकार के वश होकर कंस को कभी विचार भी नहीं हुआ कि जिसको परमात्मा बचाना चाहता है उसे दुनिया की कोई शक्ति नहीं मार सकती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विष्णुपुराण कहता है कि नारद ने कंस को बहकाया कि वे दोनों लड़के वसुदेव के हैं। इधर तो कंस को यों बहकाया कि जब तक ये दोनों लड़के जीवित हैं तब तक तेरा राज्य सुरक्षित नहीं, उधर कृष्ण और बलराम को बदला लेने के लिए तत्पर किया।
- ↑ कर्नल टॉड ने ऐसी अनेक कहानियाँ लिखी है। उनमें से एक मुकुन्ददास राठौर की है जिसको औरंगजेब ने जीवित शेर के पिंजरे में बन्द कर दिया था। जंगल का शेर राजपूतानी के बच्चे से आँख न लड़ा सका और मुकुन्ददास सही सलामत पिंजरे से निकल आया- वह भी अकेला, बिना किसी शस्त्र के शेर पर विजयी हुआ।
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