योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 122

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

Prev.png

तीसवाँ अध्याय
महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध


युद्ध तो भीष्म और द्रोण के मरने से ही समाप्त हो गया था, परन्तु दुर्योधन को कर्ण की बाणविद्या और शस्त्रविद्या पर इतना भरोसा था कि अभी तक सफलता की टिमटिमाती रोशनी कभी-कभी उसकी आँखों के सामने झलक दिखा जाती थी। कर्ण ने यह शपथ खाई थी कि वह अर्जुन को मारेगा या स्वयं युद्ध में उसके हाथ से मारा जायेगा।

द्रोण के मरने पर दुर्योधन ने कर्ण को अपनी सेना का सेनापति बनाया। कर्ण ने भी युद्ध में इस प्रकार हाथ दिखलाये जिससे देवता भी उसकी वीरता का सिक्का मान गए। कई अवसरों पर तो उसने युधिष्ठिर को युद्ध में नीचा दिखाया और पाण्डव सेना को बहुत हानि पहुँचाई। श्रीकृष्ण ने यह चाल चली की प्रथम तो अर्जुन को इसके सामने युद्ध में आने से रोकता रहा। जब कर्ण पाण्डव सेना के विख्यात योद्धाओं से लड़ता-लड़ता थक गया और पाण्डव दल में कोई अन्य वीर उसके सामने लड़ने वाला न रहा तो कृष्ण ने अर्जुन को कर्ण के सामने कर दिया। कर्ण और अर्जुन का युद्ध क्या था मानो भूचाल था। दोनों वीरों ने तीरों की बौछार से युद्धस्थल को धुआँधार कर दिया और शस्त्रविद्या के ऐसे कौशल दिखलाये जिससे पाँच हजार वर्ष के बीतने पर भी अभी तक अर्जुन और कर्ण का नाम सर्वसाधारण के सामने है। इस युद्ध में कृष्ण पर भी बाणों और शस्त्रों की बहुत मार रही, परन्तु वह अपने समय का एक ही पुरुष था जो खूब होशियारी से अपने आपको बचाता रहा और अर्जुन को लड़ाई के लिए उत्तम से उत्तम स्थान पर ले जाकर खड़ा करता रहा। एक समय कर्ण के रथ का पहिया कीचड़ में फँस गया। कर्ण स्वयं पहिये को निकालने के लिए रथ से नीचे उतरा और युद्ध-धर्म के नाम पर अर्जुन से अपील की कि जब तक मैं फिर रथ पर न बैठ जाऊँ, युद्ध रुका रहे।

उस समय कृष्ण ने यद्यपि संकेत से अर्जुन को तो रोक दिया परन्तु बड़े जोर से कर्ण को इस बात पर धिक्कारा कि अब अपनी जान बचाने के लिए उसे धर्म याद आ गया। उस दिन धर्म को कहाँ भूल गया था जब तेरी उपस्थिति में द्रौपदी को राजसभा में बेइज्जत किया गया था, जब तुम सात आदमियों ने इकट्ठे होकर बेचारे अभिमन्यु को मारा था, जब तेरी सम्मति से दुर्योधन ने पाण्डवों के महल को आग लगा दी थी आदि। कर्ण इस धिक्कार का तो क्या जवाब देता। रथ का पहिया निकालकर फिर लड़ने लगा और अंत में अर्जुन के हाथ से मारा गया। कर्ण के मरते ही कौरव सेना ने भागना आरम्भ किया और दुर्योधन के शिविर में दुःख और शोक छा गया। हाँ! लालच और क्रोध ने दुर्योधन की आँखों पर ऐसा पर्दा डाल किया था कि इतनी मारकाट पर भी उसका चित्त नहीं पिघला और अब भी उसके दिल में राज्य की अभिलाषा गई नहीं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः