योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 121

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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उन्तीसवाँ अध्याय
महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व


अनेक विद्वानों की सम्मति है कि यह कहानी पीछे की मिलावट है। द्रोण ब्राह्मण थे और धृष्टद्युम्न क्षत्रिय था। क्षत्रिय के लिए ब्राह्मण को मारना उचित नहीं था। इस कारण पांचाल दरबार के किसी कवि ने अपने राजपुत्र से ब्राह्मण हत्या का पाप दूर करने के लिए इस युद्ध का सारा बोझ श्रीकृष्ण के सिर मढ़ दिया है। श्रीकृष्ण को तो स्वयं परमेश्वर माना ही जाता है। परमेश्वर सब कुछ कर सकता है और उसके लिए सब कुछ उचित है, इस कारण उनके विचार से श्रीकृष्ण पर कुछ दोष नहीं आ सकता।

सम्भवतः इस कहावत का एक और अभिप्राय भी है अर्थात लड़ाई में धोखा, दगाबाजी, झूठ का व्यवहार उचित ठहराया जाता है। तथापि स्पष्ट प्रतीत होता है कि जिस समय यह कहानी बढ़ाई गई उस समय भी आर्यपुरुषों में सत्य का इतना मान था, सर्वसाधारण को झूठ व धोखे से इतनी घृणा थी कि इस कहानी के बनाने वाले महाशय को यह भी लिखना पड़ा कि युधिष्ठिर ने जब यह असत्य कहा तो इससे उसका रथ, जो सत्यता के कारण पृथ्वी से कुछ ऊँचाई पर चला करता था, वह पृथ्वी के संग लग गया। युधिष्ठिर के लिए यह प्रसिद्ध है कि इससे पहले उसने कभी झूठ नहीं बोला था और उसकी सत्यता का प्रताप ऐसा था कि जिस रथ पर वह बैठता था वह रथ पृथ्वी से कई हाथ ऊपर हवा में चला करता था। परन्तु जब वह झूठ बोला तो तुरन्त उसका रथ पृथ्वी पर गिर पड़ा और अन्य साधारण मनुष्यों में तथा उसमें कोई भेद न रहा। उपर्युक्त लेख से यह प्रकट है कि द्रोण अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनने पर भी युद्ध करता रहा। हम उन ग्रन्थकर्ताओं से सहमत हैं जिनकी सम्मति में यह कहानी पीछे की मिलावट और मूल घटना के विरुद्ध प्रतीत होती है।

द्रोण के देहान्त के बाद का भाग सब का सब गप मालूम होता है। कवि को अपनी बात निभाने के लिए पाण्डव शिविर में झगड़ा करवाने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अर्जुन इत्यादि की इस धोखेबाजी पर युधिष्ठिर को धिक्कार और भीम तथा धृष्टद्युम्न द्वारा उनकी सहायता आदि सारे उल्लेख प्रक्षिप्त हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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