योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 1

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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ग्रन्थकार लाला लाजपतराय


भारत की आजादी के आन्दोलन के प्रखर नेता लाला लाजपराय का नाम ही देशवासियों में स्फूर्ति तथा प्रेरणा का संचार करता है। अपने देश, धर्म तथा संस्कृति के लिए उनमें जो प्रबल प्रेम तथा आदर था उसी के कारण वे स्वयं को राष्ट्र के लिए समर्पित कर अपना जीवन दे सके। भारत को स्वाधीनता दिलाने में उनका त्याग, बलिदान तथा देशभक्ति अद्वितीय और अनुपम थी। उनके बहुविध क्रियाकलाप में साहित्य-लेखन एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। वे उर्दू तथा अंग्रेजी के समर्थ रचनाकार थे।

लालाजी का जन्म 28 जनवरी, 1865 को अपने ननिहाल के गाँव ढुंढ़िके जिला फरीदकोट, पंजाब में हुआ था। उनके पिता राधाकृष्ण लुधियाना जिले के जगराँव कस्बे के निवासी अग्रवाल वैश्य थे। लाला राधाकृष्ण अध्यापक थे। वे उर्दू-फारसी के अच्छे जानकार थे तथा इस्लाम के मन्तव्यों में उनकी गहरी आस्था थी। वे मुसलमानी धार्मिक अनुष्ठानों का भी नियमित रूप से पालन करते थे। नमाज पढ़ना और रमजान के महीने में रोज़ा रखना उनकी जीवनचर्या का अभिन्न अंग था तथापि वे सच्चे धर्म-जिज्ञासु थे। अपने पुत्र लाला लाजपतराय के आर्यसमाजी बन जाने पर उन्होंने वेद के दार्शनिक सिद्धान्त त्रैतवाद[1] को समझने में भी रुचि दिखाई। लालाजी की इस जिज्ञासु प्रवृत्ति का प्रभाव उनके पुत्र पर भी पड़ा था।

लाजपतराय की शिक्षा पाँचवें वर्ष में आरम्भ हुई। 1880 में उन्होंने कलकत्ता तथा पंजाब विश्वविद्यालय से एंट्रेंस की परीक्षा एक ही वर्ष में पास की और आगे पढ़ने के लिए लाहौर आये। यहाँ वे गवर्नमेंट कॉलेज में प्रविष्ट हुए और 1882 में एफ. ए. की परीक्षा तथा मुख्तारी की परीक्षा साथ-साथ पास कीं। यहीं वे आर्यसमाज के सम्पर्क में आये और उसके सदस्य बन गये। डी. ए. वी. कॉलेज, लाहौर के प्रथम प्राचार्य लाला हंसराज[2] तथा प्रसिद्ध वैदिक विद्वान पं. गुरुदत्त उनके सहपाठी थे, जिनके साथ उन्हें आगे चलकर आर्यसमाज का कार्य करना पड़ा। इनके द्वारा ही उन्हें महर्षि दयानन्द के विचारों का परिचय मिला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ईश्वर, जीव तथा प्रकृति का अनादित्य।
  2. आगे चलकर महात्मा हंसराज के नाम से प्रसिद्ध।

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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