योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 60

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम


समय के फेर ने उन्हें महलों के बदले घास-फूस की झोंपड़ियों का मुँह दिखलाया। सुन्दर-सुन्दर सवारियों के स्थान में छकड़े की सवारी दी। धनुष-बाण तथा ढाल-तलवार के बदले गाय हाँकने का डंडा हाथों में पकड़ाया। बहुमूल्य सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण न देकर तन ढँकने को एक लँगोटी दी। शस्त्रविधा से युद्ध करने की शिक्षा की अपेक्षा बनैले पशुओं से मल्लयुद्ध करना सिखाया और संगीतशास्त्रज्ञों से शिक्षा न दिला कर देहाती वंशी पर संतोष कराया। कुटिल काल! तू बड़ा प्रबल है, तेरे हथकण्डों से न कोई बचा है और न बचेगा। पर यह सब बातें उन्हें ऐसी भाई ओर उन्होंने अपनी विपत्ति से भी ऐसा लाभ उठाया कि उन सब कठिनाइयों ने उनके स्वाभाविक, सौजन्य तथा जातीय कुलीनता और उस पर निर्मल बना दिया।

उन गोपों की मंडली में किसी-किसी को ही यह मालूम था कि उस चंचल लड़के के वेष में एक राजकुमार पल रहा है, जो समर्थ होकर अपने माता-पिता के शत्रुओं का सिर कुचलेगा और अपने रक्त के प्यासों का लहू पिएगा। जो अपने देश और अपनी मातृभूमि को अत्याचारी शासकों के पंजे से छुड़ाकर उनका उद्धार करेगा। फिर विद्या और शास्त्र की शिक्षा पाकर ऊँचे से ऊँचे धर्म का उपदेश करेगा और अन्त में अपने पीछे अपना शुद्धाचरण छोड़ जायेगा ताकि लाखों वर्ष तक लोग उसको परमेश्वर की पदवी देकर उसका पूजन करें।

बिचारी यशोदा कृष्ण के ऊधम से ऐसी तंग आ गई थी, कि उसने हार मानकर एक दिन उनकी कमर में रस्सी डाल दी और उस रस्सी को लकड़ी की एक ओखली से बाँध दिया। पर ज्योंही यशोदा ने पीठ मोड़ी, कृष्ण ने रस्सी तोड़ना आरम्भ किया और ऐसा जोर लगाया, कि ओखली को भी साथ खींच ले चले। उनके आँगन में अर्जुन[1] के दो वृक्ष थे, ओखली वृक्षों में फँस गई। कहते हैं, कि जब कृष्ण ने दूसरी बार जोर लगाया तो वे वृक्ष जड़ से उखड़कर गिर पड़े। इस पर इतना कोलाहल मचा कि सारा गाँव उमड़ आया। कृष्ण लोगों को देखकर हँसने लगे। हम नहीं कह सकते कि इस घटना में कहाँ तक सत्य है। पहली बात तो कुछ असम्भव नहीं जान पड़ती, पर दूसरी बात अर्थात एक छोटे-से बच्चे के बल से दो बड़े वृक्षों का जड़ से उखड़ जाना कदापि सम्भव नहीं। हाँ, यदि उन्हें बड़े वृक्ष की अपेक्षा छोटा पौधा मान लें तो झगड़ा मिट जाता है। पर ऐसा जान पड़ता है कि कृष्ण के भक्तों ने इन पौधों को अत्युक्ति से बढ़ाते-बढ़ाते बड़े वृक्ष की पदवी प्रदान कर दी है जिनके बोझ से आधा गाँव दब गया।

अवतारों की अमानुषी शक्ति के मानने वालों के लिए[2] इन सब कथाओं को सर्वतोभाव से सत्य मान लेने में कुछ संदेह नहीं होना चाहिए। हाँ, जो महाशय उनकी अमानुषी शक्ति को नहीं मानते, वे अपने परिणाम आप निकाल लेंगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह वर्णन विष्णुपुराण में नहीं है। मिस्टर पॉल जिन्होंने अंग्रेजी में कृष्ण की जीवनी लिखी है, लिखते हैं कि अर्जुन एक छोटे से पेड़ का नाम है जिसको अंग्रेजी और बंगला में कोंची कहते हैं।
  2. चाहे वे किसी जाति के हों।

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अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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