योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम
उन गोपों की मंडली में किसी-किसी को ही यह मालूम था कि उस चंचल लड़के के वेष में एक राजकुमार पल रहा है, जो समर्थ होकर अपने माता-पिता के शत्रुओं का सिर कुचलेगा और अपने रक्त के प्यासों का लहू पिएगा। जो अपने देश और अपनी मातृभूमि को अत्याचारी शासकों के पंजे से छुड़ाकर उनका उद्धार करेगा। फिर विद्या और शास्त्र की शिक्षा पाकर ऊँचे से ऊँचे धर्म का उपदेश करेगा और अन्त में अपने पीछे अपना शुद्धाचरण छोड़ जायेगा ताकि लाखों वर्ष तक लोग उसको परमेश्वर की पदवी देकर उसका पूजन करें। बिचारी यशोदा कृष्ण के ऊधम से ऐसी तंग आ गई थी, कि उसने हार मानकर एक दिन उनकी कमर में रस्सी डाल दी और उस रस्सी को लकड़ी की एक ओखली से बाँध दिया। पर ज्योंही यशोदा ने पीठ मोड़ी, कृष्ण ने रस्सी तोड़ना आरम्भ किया और ऐसा जोर लगाया, कि ओखली को भी साथ खींच ले चले। उनके आँगन में अर्जुन[1] के दो वृक्ष थे, ओखली वृक्षों में फँस गई। कहते हैं, कि जब कृष्ण ने दूसरी बार जोर लगाया तो वे वृक्ष जड़ से उखड़कर गिर पड़े। इस पर इतना कोलाहल मचा कि सारा गाँव उमड़ आया। कृष्ण लोगों को देखकर हँसने लगे। हम नहीं कह सकते कि इस घटना में कहाँ तक सत्य है। पहली बात तो कुछ असम्भव नहीं जान पड़ती, पर दूसरी बात अर्थात एक छोटे-से बच्चे के बल से दो बड़े वृक्षों का जड़ से उखड़ जाना कदापि सम्भव नहीं। हाँ, यदि उन्हें बड़े वृक्ष की अपेक्षा छोटा पौधा मान लें तो झगड़ा मिट जाता है। पर ऐसा जान पड़ता है कि कृष्ण के भक्तों ने इन पौधों को अत्युक्ति से बढ़ाते-बढ़ाते बड़े वृक्ष की पदवी प्रदान कर दी है जिनके बोझ से आधा गाँव दब गया। अवतारों की अमानुषी शक्ति के मानने वालों के लिए[2] इन सब कथाओं को सर्वतोभाव से सत्य मान लेने में कुछ संदेह नहीं होना चाहिए। हाँ, जो महाशय उनकी अमानुषी शक्ति को नहीं मानते, वे अपने परिणाम आप निकाल लेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह वर्णन विष्णुपुराण में नहीं है। मिस्टर पॉल जिन्होंने अंग्रेजी में कृष्ण की जीवनी लिखी है, लिखते हैं कि अर्जुन एक छोटे से पेड़ का नाम है जिसको अंग्रेजी और बंगला में कोंची कहते हैं।
- ↑ चाहे वे किसी जाति के हों।
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