विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
अष्टम प्रकरण
सुदामा का चरित्र और वसुदेवजी का यज्ञ
सुदामा तथा ऋषियों द्वारा की गयी स्तुति
भगवान् उसको देखकर रुक्मिणी के पलंग से उठ दौड़े और इस दुर्बल ब्राह्मण को छाती से लगा लिया। रुक्मिणी और उसकी सहेलियों ने ब्राह्मण के शरीर पर सुगन्धयुक्त तैल मला और स्नान कराकर सुंदर वस्त्र पहिनाये। सुंदर स्वादयुक्त भोज्य पदार्थ खिलाये। तदनन्तर सुदामा का हाथ पकड़कर भगवान गुरुकुलवास के समय की वार्ता करने लगे। भगवान ने पूछा ‘क्या तुम को उस रात्रि की बात याद है जब आँधी और वर्षा के कारण हम वन में व्याकुल हो रहे थे और प्रातःकाल गुरु (सान्दीपनि) जी हम को खोजने के लिए आये थे। उन्होंने हम को आशीर्वाद दिया था कि तुम्हारी विद्या सफल हो क्योंकि हम देह का अनादर करके वन में लकड़ी (समिध्) लाने के लिए गये थे और वहाँ हमने खूब कष्ट उठाया था।’ भगवान ने और भी अनेक बातें पूछीं और हास्य में कहा कि क्या हमारी भावज ने हमारे लिये कुछ भेजा है? सुदामा ने लज्जित होकर मस्तक (सिर) नीचे कर लिया। भगवान तो अन्तर्यामी हैं, उन्होंने सुदामा का वह वस्त्र खींचा जिसमें चावल (चूड़े) बँधे हुए थे और ‘यह क्या है?’ कहकर पोटली खोल ली और बड़े आदर से यह कहकर कि ‘यह भेंट मुझे अत्यंत प्रिय है’ एक मुट्ठी चावल खा लिया। जब दूसरी मुट्ठी भरी तो लक्ष्मी जी की अंशस्वरूप रुक्मिणी जी ने परमात्मा श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ लिया और कहा ‘हे विश्वात्मन्! आपके एक मुट्ठीभर अन्न खाने से इस ब्राह्मण को मेरी कृपा से जो अर्थ इस लोक और परलोक में प्राप्त हो सकता है वह मिल गया है अब क्या आप चावल की दूसरी मुट्ठी खाकर मुझे इसके अधीन कर देना चाहते हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज