भागवत स्तुति संग्रह पृ. 375

भागवत स्तुति संग्रह

चौथा अध्याय

द्वारकालीला
अष्टम प्रकरण
सुदामा का चरित्र और वसुदेवजी का यज्ञ

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सुदामा तथा ऋषियों द्वारा की गयी स्तुति

भगवान् उसको देखकर रुक्मिणी के पलंग से उठ दौड़े और इस दुर्बल ब्राह्मण को छाती से लगा लिया। रुक्मिणी और उसकी सहेलियों ने ब्राह्मण के शरीर पर सुगन्धयुक्त तैल मला और स्नान कराकर सुंदर वस्त्र पहिनाये। सुंदर स्वादयुक्त भोज्य पदार्थ खिलाये।

तदनन्तर सुदामा का हाथ पकड़कर भगवान गुरुकुलवास के समय की वार्ता करने लगे। भगवान ने पूछा ‘क्या तुम को उस रात्रि की बात याद है जब आँधी और वर्षा के कारण हम वन में व्याकुल हो रहे थे और प्रातःकाल गुरु (सान्दीपनि) जी हम को खोजने के लिए आये थे। उन्होंने हम को आशीर्वाद दिया था कि तुम्हारी विद्या सफल हो क्योंकि हम देह का अनादर करके वन में लकड़ी (समिध्) लाने के लिए गये थे और वहाँ हमने खूब कष्ट उठाया था।’

भगवान ने और भी अनेक बातें पूछीं और हास्य में कहा कि क्या हमारी भावज ने हमारे लिये कुछ भेजा है? सुदामा ने लज्जित होकर मस्तक (सिर) नीचे कर लिया। भगवान तो अन्तर्यामी हैं, उन्होंने सुदामा का वह वस्त्र खींचा जिसमें चावल (चूड़े) बँधे हुए थे और ‘यह क्या है?’ कहकर पोटली खोल ली और बड़े आदर से यह कहकर कि ‘यह भेंट मुझे अत्यंत प्रिय है’ एक मुट्ठी चावल खा लिया। जब दूसरी मुट्ठी भरी तो लक्ष्मी जी की अंशस्वरूप रुक्मिणी जी ने परमात्मा श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ लिया और कहा ‘हे विश्वात्मन्! आपके एक मुट्ठीभर अन्न खाने से इस ब्राह्मण को मेरी कृपा से जो अर्थ इस लोक और परलोक में प्राप्त हो सकता है वह मिल गया है अब क्या आप चावल की दूसरी मुट्ठी खाकर मुझे इसके अधीन कर देना चाहते हैं?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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