विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
प्रथम प्रकरण
रुक्मिणी के साथ विवाह
रुक्मिणी का पत्र
वह बाला जिसका चित्त गोविन्द ने हर लिया है, दुःख के आसुओं से भरे नेत्रों को मूँदकर बैठ गयी। इस प्रकार गोविन्द के आने की बाट देखने वाली रुक्मिणी जी को शुभ सूचना देने के लिए उनकी बायीं भुजा और बायीं आँख फड़कने लगी, तब रुक्मिणी जी ने आँखें खोली तो उस ब्राह्मण को आते देखा और उसके लक्षण देखकर भगवान के आगमन का अनुमान कर लिया। ब्राह्मण ने आकर रुक्मिणी जी से कहा- ‘श्रीकृष्ण आ गये हैं’ और उनकी प्रशंसा भी की तथा यह भी बतलाया कि वे युद्ध में समस्त राजाओं को जीतकर उसका पाणिग्रहण करेंगे। यह सुनकर रुक्मिणी जी उस ब्राह्मण पर इतनी प्रसन्न हुईं कि उन्हें उसके उपकार का बदला चुकाने के लिए सर्वस्वदान भी तुच्छ जान पड़ा। अतः उस समय उन्होंने केवल नमस्कार ही किया। तदनन्तर अपनी कुलप्रथा के अनुसार रुक्मिणी जी अम्बिका देवी की पूजा करने के लिए पैदल ही चलीं। इस समय वे मौनव्रत धारण किए हुए थीं और श्रीभगवान के चरणों का ध्यान करती हुई अपनी सखी तथा चेरियों के मध्य में चारों ओर से अस्त्र-शस्त्रधारी योद्धाओं से घिरी हुई जा रही थीं। मंदिर में पहुँचकर उन्होंने यथाविधि पूजा की और यह वर माँगा कि भगवान मेरे पति हों। पूजा करके जब रुक्मिणी जी बाहर आयीं और धीरे-धीरे चलते हुए उन्होंने अपनी दृष्टि इधर-उधर डाली तो वहाँ जो वीर थे वे मोहित हो गये। इस समय रुक्मिणी जी की दृष्टि अकस्मात भगवान के ऊपर पड़ी तो वे उनके रथ की ओर जाने का उद्यत हुईं। भगवान ने अपना रथ उनकी ओर बढ़ाया और शिशुपालादि सब वीरों के देखते-देखते रथ खड़ाकर रुक्मिणी जी का हाथ पकड़ उन्हें अपने रथ में चढ़ा लिया और तुरंत वहाँ से चल दिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज