बाजत ताल मृदंग बीन डफ बाँसुरी। निरतत गोपी ग्वाल चरण चित चावरी।। यशुमती चीर पहराय नौरंग भई ग्वालिनी। सुन्दर वदन निहार चकित भई भामिनी।। श्री बलभद्रजु के बीच असुर दल खंडना। भक्त वत्सल महाराज यादव कुल मंडना।। शंकर धरत है ध्यान सुगोद खिलावही। सो मुख चूमति माय सु पलना झुलावही।। श्री नन्द यशुमति नेह चरण चित ल्यावही। हरिगुण मंगल गान गोविन्दगुण गावहीं।।