(9) तर्ज - मैं तो गोवर्धन को जाऊँ
कान्हा बरसाने में आजाइयो, बुलाय रही राधा प्यारी।। टेर ।।
नवल रूप मोहन तेरो देखूं, झाँकी मोर मुकुट की देखूँ।
निरखत जनम सुफल करि लेखूँ, नैक दर्शन मोहि कराय जाइयो।। 1 ।।
दूध दही मेरे बहुतेरो, माखन मिसरी धर्यो घनेरो।
नैक आकर भोग लगाय जाइयो।। 2 ।।
मिलिबे की है चाह घनेरी, ठाड़ी बाट तकूं मैं तेरी।
नैक जल्दी खबरि कराय जाइयो।। 3 ।।
जमुनाजी को जल है नीको, बृज को वास सुहावे मेरे जीको।
नैक गैया आन चराय जाइयो।। 4 ।।