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मैं तो रटँगी राधा नाम व्रज की गलियन में।
खोई रहूँगी आठौं याम ब्रज की गलियन में।। टेर ।।
इत उत डोलूँ कह कह राधा, मिट जाये जीवन की बाधा।
और नहीं कछु काम।। 1 ।।
उलझ उलझ ब्रज करील बन में, सेवाकुंज रहों निधिवन में।
करौं सदा विश्राम।। 2 ।।
अब तो चाह यही मेरे मन की, धूरि मिले मोहि हरि चरनन की।
मिलि जाये घनश्याम।। 3 ।।