(10) तर्ज - अवध में लडवा बटे
मेरो जमुना किनारे गाँव रे, साँवरे आजाइयो।। टेर ।।
जमुना-किनारे मेरी ऊँची हवेली, मैं बृज की गोपिका नवेली,
राधे किशोरी मेरो नाँव रे।। 1 ।।
मल-मल के असनान कराऊं, घिस-घिस चन्दन खोर लगाऊं,
पूजा करूंगी सुबह शाम रे।। 2 ।।
खस-खस का मैं बँगला बनाऊं, चुन-चुन कलियाँ सेज बिछाऊँ,
धीरे-धीरे दाबूं तेरे पाँव रे।। 3 ।।
देखत रहुँगी बाट तुम्हारी, जलदी आइयो कृष्ण मुरारी,
झाँकी करेगी बृज-बाम रे हँसि बतराय जाइयो।। 4 ।।