(12)
निरमोही मोहन अब क्यू जेज लगाय,
थाँने बुला बुला हारी।। टेर ।।
जब से तुम बिछुड़े मनमोहन, कबहुँ न पायो चैन।
पल पल बीते बरष बरोबर बैरण हो गई रैण।
अब जीना है भारी।। 1 ।।
शब्द सुनत म्हारो हिवड़ो काँपे, मीठे-मीठे बैन।
बिरह व्यथा कासों कहुँ सजनी, बहगई करवत ऐन।
थाँरी सूखे फुलवारी।। 2 ।।
थाँ देख्या बिन कलना पड़त है सिथिल भये दोऊ नैण
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर दुख मेटण सुख दैण
प्रभु सुधि लो अब म्हारी।। 3 ।।