गूजरी
(68)
गूजरी देन लगी ताना रे, गूजरी देन लगी ताना!
तुम सुनो जसोदा मता।। गूजरी।। टेर ।।
अरी! जसोदा मात, जोड़ कहुँ हाथ, अरज सुन मेरी।
हम कब लग विपदा सहैं बिरज की चेरी।।
यह देख मेरा तूँ हाल, तेरो नन्दलाल चुनरियाँ फारी।
मेरी मटकी लीन्ही, खोस तेरो बनवारी।।
मारग में बैठ्यो पावे, सब ग्वाल बाल बहकावे।
नित नई-नई धूम मचावे, वो हमको नहीं सुहावे।।
जसोदा के आगे गुजरी रोवन लागी झार झार।
फारी है चुनरियाँ मेरी करदीन्ही तार तार।।
झूमका जन्जीरा मोती तोड़ गेर्यो नोसर हार।
शीश की मटकियाँ वो करदी तगार डार।।
आज पीछे मैया तेरे घर नहिं आऊँगी।
पकड़ के चोटी वाकी कंस पै ले जाऊँगी।।