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तर्ज - पींपली
मोहन मोहन निसदिन मैं रटूँजी, हाँजी, म्हारा मोहन जीवन प्रान,
दरश दिवानी कान्हा आपकी जी।। 1 ।।
साँवरि सूरत थाँरी मन बसी जी, हाँ जी थाँरी सुन मुरली की तान,
बिसरी सुध बुध सारी देह की जी।। 2 ।।
मोर मुकुट पिताम्बर काछनी जी, हाँजी थाँरे गल बैजन्ती माल,
मुख पर मुरली सोहे अति घणीं जी।। 3 ।।
धेनु चराओ बाबा नन्द की जी, हाँजी काईं माँगो दधि को दान,
रीत चलाओ कान्हा थे नई जी।। 4 ।।
बेनु बजाओ कान्हा सोहणीं जी, हाँजी थे तो नाचो म्हारे आँगन माहिं,
माखन मिसरी देस्याँ म्हे घणीं जी।। 5 ।।