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यशोदाजी की अभिलाषा
मेरे मोहन को ल गन कब होसी।। टेर ।।
सुत बहु मेरे घर कब आवे, बहुरानी मेरे घर कब आवे।
ज्योतिष देख बता दे रे जोशी।। 1 ।।
बिबिध भाँति के भोजन जिमावूँ,
नव पट भूषण दूँ परितोसी।। 2 ।।
रतन मुहर दूँ भेंट दक्षिणा,
गैया दूँगी तोहे पाली पौसी।। 3 ।।
‘श्याम सखा’ कब बनि हैं बराती,
तरसत बृज के पास पड़ौसी।। 4 ।।