इच्छा रास मँडल की कीन्ही, जमुना तट भूमी रँग भीनी,
आग्या विस्वकर्मा को दीन्ही,
अब तुम करो मँडप तैयार, थली सब रतना सूँ जड़ी।। 7 ।।
आग्या विश्वकर्मा सिर धारी, मोपर कृपा करी गिरधारी,
होगइ मण्डप की तैयारी,
हाजिर हुई योगमाया जब, हरि के चरणाँ में पड़ी।। 8 ।।
मोहन रूप लिया बहु धार, गोप्याँ हो गई सब तैयार,
बाजे मिरदँग बीन सितार,
सुर मुनि निरखत बैठ बिमान, लगादी फूलाँ की झड़ी।। 9 ।।
छम छम नाचे कृष्ण मुरारी, इक गोपी इक कुञ्ज बिहारी,
पूरन चन्द्र छटा उजियारी,
जमुना रुक गई बहती धार, रैन छह मास की करी।। 10 ।।
लीला महारास की गावे, ज्याँ का काम क्रोध मिटज्यावे,
जम की त्रास कबहु नहिं आवे,
बरनी दसम सकन्द भागवत, धन धन बृज की गूजरी।। 11 ।।