विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीश्रीकृष्ण के प्रति गोपियों का अभिसारभाई! थियोसोफिकल सोसाइटी ने कहा कि हम हिन्दू धर्म, मुसलमान धर्म, ईसाई धर्म सबका समन्वय करेंगे, सबको एक बतायेंगे, तो एक धर्म और अलग बन गया। अगर सौ धर्म पहले से थे तो एक सौ एक धर्म बन गये। अकबर ने कहा- हम दीन-इलाही मत बनायेंगे- हिंदू, मुसलमान सब उसमें आवेंगे। ये इलाही पन्थ ही अलग हो गया। ऐसे नहीं होता है, सबकी योग्यता अलग-अलग होती है और अपनी योग्यता के अनुसार सब ईश्वर की ओर चलते हैं; ये ढोंढी पीटकर गाने का मार्ग नहीं है, यह एकान्त में मिलने का रास्ता है। मुसाफिर खाने में ब्याह नहीं हुआ करता। यह तो एकान्त कमरे में ईश्वर, परमेश्वर से, अपने परमात्मा से मिलते हैं। गोपियों ने एक दूसरो को बताया नहीं। एक निकली तो सास मिल गयी। रास में कुमारियाँ भी आयी हैं और विवाहिता भी आयी हैं, भला। श्रीकृष्ण ने वरदान तो दिया था कुमारियों को पर जब बाँसुरी बजायी तो कुमारी, विवाहिता, ऊढ़ा, अनूढ़ा, युवती, वृद्धा, मुग्धा, अज्ञात यौवना- इनका भेद ही नहीं रहा। कृष्ण ने कहा सब आओ। हाँ, तो एक की मिल गयी सास, बोली- बोली- कहाँ जाती है री, रात आने वाली है। बोली- मैं पानी भरने यमुना किनारे गयी थी, सो अपना घट ही भूल आयी, अभी लेकर आती हूँ। एकने कहा- माँ। नहीं देखती कैसी चाँदनी खिली हुई है, जरा एक बार यमुनाजी की शोभा तो देखकर आऊँ। यामि यामुनतटीनिकटस्थं श्यामधाम निजधाम विहाय- मैं तो वह काला-काला जो कुञ्ज है, वहाँ ऐसी बढ़िया हरियाली है कि दिन में काला लगता है, जरा इस चाँदनी रात में यमुनाजी के तट पर पुलिन पर खड़ी होकर चाँदनी का रस लेकर अभी आती हूँ। कोई किसी को देखे नहीं, कोई किसी को दिखावे नहीं, सब सबसे छिपावें और सब उधर ही जायँ। और चलीं भी तेजी से।यदहरेव विरजेत् तदहरेव प्रव्रजेत् ब्रह्मचर्याद् वा गृहाद् वा वनाद्वा। हम तो बंबई में कथावार्ता कर रहे हैं तो बहुत सम्हालकर बोलना पड़ता है। श्रुति कहती है कि बड़े सद्भाग्य से, ईश्वर की कृपा से संसार छोड़ने का और ईश्वर से मिलने का संकल्प हृदय में आता है क्योंकि हमारी वासना नहीं है, ईश्वर का संदेश है क्योंकि हमारी वासना तो संसार में रमने की है। बोले- जिस समय ईश्वर यह संदेश दे कि छोड़ो संसार और जोड़ो अपने को हमसे, उस समय फिर उसकी उपेक्षा नहीं करना। वेद में उपनिषद् कहती हैं- यहरेव विरजेत् तदहरेव प्रव्रजेत्। जब वैराग्य तभी प्रव्रज्या। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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