विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 43रासलीला का अन्तरंग-2प्रेमी कृष्ण हैं, और प्रेयसी प्रियतमा गोपियाँ! और श्रीकृष्ण कितना प्रेम करते हैं कि अपना समग्र भगवत्व, अपनी समूची सारी भगवत्ता, गोपियों को अपने से मिलाने से खर्च करते हैं। अपना सारा ऐश्वर्य, सारा धर्म, सारा यश, सारी श्रीः सारा ज्ञान और सारा वैराग्य- अपनी सारी भगवत्ता दाँव पर लगाकर भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को अपनी ओर आकृष्ट किया- यह बात आपको कल सुनायी थी। ध्वनि के द्वारा बुला लेना, वाक् के द्वारा मना करना, और मना करने पर उनके न मानने का उनके अंदर सामर्थ्य उत्पन्न कर देना, उनके मुख से यश-श्रवण करना रूप-रमण में गर्व आना, यद्यपि गोपी गर्व लेकर आयी हैं तथापि उनको स्वीकार कर लेना, गर्व देखकर के अन्तर्धान हो जाना, अन्तर्धान होने पर भी सुखी रहना, और रूपरमण के स्थान पर नामरमण, यशोरमण, कीर्तिरमण, करवाना- पूजा करो, पाठ करो, माला फेरो- गोपीगीत के रूप में ज्ञान का वर्णन करवाना, पूजा करो, पाठ करो, माला फेरो- गोपीगीत के रूप में ज्ञान का वर्णन करवाना, आविर्भाव के रूप में अपनी श्री, सौन्दर्य प्रकट करना, प्रेम-प्राकट्य के रूप में गोपियों के प्रेम के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना, गोपियों के न पारयेऽहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधुकृत्यं- और उनके सामने अपनी भगवत्ता का आविर्भाव- पादन्यासैर्भुजविधुतिभिः- अनेक रूप होना, उनके हृदय में होना, गोपियों का तन्मय हो जाना, और अन्त में कह देना कि लो तुम घर जाओ- यह नहीं कि रास करने से भगवान के वैराग्य में या अपनी असंगता में रत्ती भर कमी आयी हो! गोपी जाना नहीं चाहती थीं, पर चली गयीं। अनिच्छन्त्यो ययुः। श्रीमद्भगावत में जो श्रीकृष्ण का रूप है। वह जरा प्रेमी रूप है। श्रीमद्भागवत् पर जैसे श्रीवल्लभाचार्य जी महाराज के निबन्ध आदि अनेक ग्रंथ हैं; सम्प्रदाय के भी हैं, लेख हैं, महाप्रभु के हैं, विट्ठल प्रभु के हैं, गोकुलराय के हैं, हरीराय के हैं; वैसे चैतन्य महाप्रभु के सम्प्रदाय में भी सनातन गोस्वामी, जीव गोस्वामी, रूप गोस्वामी, विश्वनाथ चक्रवर्ती, बलदेव विद्याभूषण अनेक महात्मा लिखते हैं। श्रीवल्लभ-सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण के प्रेम को मुख्य मानते हैं। इतना प्रेम है श्रीकृष्ण में कि गोपियों के अयोग्य होने पर भी उनको योग्य बनाने के लिए अपनी समूची भगवत्ता का जोर लगाकर के उनको अपने विहार के योग्य बना लेते हैं। श्रीरूप गोस्वामी ‘संदर्भ’ में कहते हैं श्रीमद्भागवत् के श्रीकृष्ण तो प्रेमी हैं, कैसे उनको कुरुक्षेत्र में जब यशोदा नन्द मिल गये तो अपना सिर उनकी गोद में रख दिया और रोने लग गये; यह रोने वाला भगवान! मइया लेती है हाथ में साँटी और वे डरते हैं। कहते हैं- मइया, मैंने अपराध नहीं किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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