विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 22‘लौट-जाओ’ सुनकर गोपियों की दशा का वर्णन
अब अपने मन को फिर एक बार वहाँ ले चलो जहाँ हैं श्यामसुन्दर, मुरलीमनोहर, पीताम्बरधारी, नन्दनन्दन और चाँदनी रात में शीतल मंद सुगन्धित वायु बह रही है और मन्द-मन्थर गति से सुन्दर यमुनाजी बह रही हैं। बालू का ज्योतिर्मय सुन्दर यमुना-पुलिन है, हरा-भरा वन है और गोपियाँ चारों ओर से श्रीकृष्ण को घेरे हुए हैं। श्रीकृष्ण ने कहा- हाँ गोपियों। समझ गया तुम बड़े भाव से आयी हो, ईश्वर करे तुम्हारा भाव बढ़ता रहे। भक्त का भाव कैसे बढ़े? भगवान् ने कहा कि इसमें शारीरिक मिलन की कोई जरूरत नहीं है। गोपियों! लौट जाओ अपने घर और वहाँ जाकर सब मिलकर एक पंडित अपने घर में बुलाओ और हमारी कथा का श्रवण प्रारंभ कर दो। देखने को बहुत मन हो तो अपने घर में तस्वीर रख लो, भाव बढ़ जावेगा, ध्यान में दर्शन कर लो, भाव बढ़ जावेगा। और कहो कि ध्यान-वान हमारे नहीं लगता, ऐसी बला हमको नहीं चाहिए, तो अच्छा, बाबा! कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण हमारे नाम का कीर्तन करो, तुम्हारा भाव बढ़ जावेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भावत- 10.29.28,30
संबंधित लेख
प्रवचन संख्या | विषय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज