विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 2रास की भूमिका एवं रास का संकल्प -भगवानपि०श्रीशुक उवाच भगवान क रूपमाधुरी, वेणुमाधुरी, लीलामाधुरी, और प्रियामाधुरी- ये जो चार प्रकार की माधुरी हैं, वे श्रीकृष्ण में विशेष हैं। उनका रूपसौन्दर्य कैसा है कि ‘यद् दर्शने दृशिषु पक्ष्मकृतं शपन्ति’- जब गोपियाँ श्रीकृष्ण का दर्शन करती हैं, तो उनको बीच में, अपनी आँखों की पलक का गिरना भी बहुत बुरा लगता है। ‘पक्ष्मकृतं शपन्ति’ – पलक गिरने वालीको जिसने बनाया उसको गाली देती हैं कि तुमने हमारी पलकें गिरने वाली क्यों बना दीं? ‘पक्ष्मकृतं शपन्ति’- इतना राग है श्रीकृष्ण के रूपदर्शन में कि सर्वलोक के पितामह, चारों वेदों के वक्ता, भगवत्-स्वरूप, भागवत-धर्म के गुरु ब्रह्मा को गाली देती हैं कि तूने हमारी आँखों में पलकें क्यों बना दीं? ‘जड उदीक्षतां पक्ष्मकृता दृशाम्’ जो श्रीकृष्ण के दर्शन में लगा हुआ है, उसके आँखों की पलकें गिरने व ली जिसने बनायी, वह जड़ है। यह गाली हुई न! यह बात भागवत् में है- दृशिषु पक्ष्मकृतं शपन्ति जड उदीक्षतां पक्ष्मकृत् दृशाम्, उदीक्षतां जनानां दृशां पक्ष्मकृतां जडः। जब किसी से राग हो जाता है और उस राग में कोई बाधा डालता है तो क्रोध आता है चाहे कोई ब्रह्मा ही क्यों न हो। इसी से बाबा! दो के बीच में नहीं पड़ना चाहिए। वंशी-माधुरी तो ऐसी है कि एक दिन गोपियों ने किसी प्रकार वंशी चुरा ली। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10.29.1
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