विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 40रास में श्रीकृष्ण की शोभा
शरद, ऋतु, पूर्णिमा तिथि और पूर्ण चंद्रमा का उदय। राकेश- राका-पूर्णिमातिथि पूर्णमासिं ईष्टे इति राकेशः, अथवा ईशावास्यमिदम् राकां ईष्टे इति राकेश। चंद्रमा आकाश में पूर्णिमा का होने से उसके भीतर जो कलंक है वह एकदम स्पष्ट दिखता है। सौन्दर्य के साथ कलंक का अयुत सिद्ध संबंध है। जब तक कलंक न लगे तब तक सुन्दरता क्या?
सह तेन यूना मिथ्यापवादवचसादभिमानसिद्धिः नन्द-नन्दन गोपीजनवल्लभ मुरली मनोहर, पीताम्बरधारी श्यामसुन्दर के साथ अगर झूठ-मूठ भी कलंक लग जाय, मिथ्या कलंक भी लग जाय, तो भाई, लोगों की दृष्टि में यह तो होगा कि उसके कुछ हैं; न हों अपनी नजर में तो क्या, लोग तो समझेंगे कि यह भी उनकी कोई है। गोपियों से जुड़कर इसकी शोभा कितनी बढ़ गयी है! यों तो चंद्रमा स्वयं प्रकाशमान है और इसमें पूर्णिमा का चंद्र तो और भी प्रकाशमान है, परंतु कलंक की अभिव्यक्ति से और ताराओं से घिरे होने पर उसकी जो शोभा प्रकट होती है, वैसी ही शोभा आज गोपियों से घिरे हुए इस वृन्दावन चंद्रकी हो रही है। ईश्वर की जैसी शोभा निर्गुण निराकार रूप में, प्रत्यक्चैतन्याभिन्न होकर के, अंतर्यामी हो करके, प्राज्ञ सर्वेश्वर सर्वज्ञ के रूप में जैसी शोभा रोज होती है उसकी अपेक्षा आज उसकी शोभा विलक्षण हुई। व्यरोचत- अर्थात् ईश्वर की शोभा बढ़ गयी। गोपी न हो तो ईश्वर की शोभा क्या? ये उपासना के जो शास्त्र हैं न, उनको दुनियादार लोग नहीं जानते हैं, और महात्मा लोग उनसे छिपाकर रखते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 10.29.44
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