विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीप्रवचन 28गोपियों का श्रीकृष्ण को पूर्वरमण की याद दिलाना
श्रीकृष्ण ने कहा कि लौट जाओ! गोपियों ने कहा कि हमारे लौट जाने में देर नहीं है अगर तुम्हें कोई रुकावट नहीं है क्योंकि तुम्हारे मौनमात्र से ही घर तो क्या, परलोक ही चली जायेंगी। जाने से अगर रोकोगे तो तुम्हीं रोकोगे, नहीं तो हम चली जायेंगी। श्रीकृष्ण ने कहा- बाबा, ऐसी क्या तबीयत खराब हो गयी है तुम्हारी, ऐसी क्या तकलीफ है तुमको, क्या रोग हो गया है तुमको कि जिसके कारण तुम मरने पर तकलीफ है तुमको, क्या रोग हो गया है तुमको कि जिसके कारण तुम मरने पर उतारू हो? उसकी कोई दवा बताओ तो हम दवा-दारू करें, तुमको जिन्दा रखें। गोपियों ने कहा कि हमारे शरीर में कोई रोग नहीं है। न कोई रोग है न राग है, बस हमारे दिल में आग लग गयी है, वह जलाती है। भगवान ने कहा कि अरे गोपियों। इसका आग का कोई उपचार नहीं है, इसको करो उपचार। यह आग शरीर में नहीं लगी है, दिल में लगी है, जो दिल में लगती है आग वह हृत्-शयाग्नि है, कामाग्नि है। गोपी कहती हैं कि तुमसे मिलने के लिए जो हृदय में तीव्र ताप है, तीव्र आकांक्षा है, यही अग्नि है। दुनिया में ऐसा कोई प्राणी नहीं होता, न देवता, न मनुष्य, न पशु, न पक्षी जिसके हृदय में यह रोग न हो जो अग्नि आध्यात्मिक है। अध्यात्म माने होता है शरीर के भीतर रहने वाली चीज। जो मन में होवे सो आध्यात्मिक है, जो इंद्रियों में है वो आध्यात्मिक है, जो शरीर में होवे सो आध्यात्मिक है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीमद्भागवत, 20.29, 35-36
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