विषय सूचीरासपञ्चाध्यायी -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वतीगोपियों की न लौट पा सकने की बेबसी और मर जाने के परिणाम का उद्घाटनये मन्त्र-दीक्षा, यह ध्वनि-दीक्षा, इससे गोपियों के हृदय में अमृत भर जाता है। फिर गोपियों के शरीर से वह छलकता है। तो स्व-अधरामृतपूरकेन गोपियाँ कहती हैं कि अपने अधरामृत की बाढ़ से हमें सींच दो, हम इसमें तर हो जायँ। और अगर ऐसा नहीं करोगे तो जानते हो? वयं किं? उसके बाद क्या होगा कि तुम्हारा ध्यान कर-करके इसी त्रिविध आग में हम जलेंगी। तो क्या होगा कि हम सबकी सब कृष्ण बन जायेंगी, और तुम हमारा ध्यान करते-करते गोपी बन जाओगे। और फिर हम बजावेंगी बांसुरी, और तुम गोपी बनकर व्याकुल होकर रोते हुए हमारी तरह रहना- खुदा करे मेरी तरह किसी पे आये दिल।
तुम्हीं जिगर को थाम के कहता फिर हाय दिल ।। ‘ध्यानेन याम पदयोः पदवीं सखे ते’- प्रियतम सखे। जब हम कृष्ण बन जायेंगी और तुम गोपी हो जावोगे तब तुम व्याकुल होकर और हमारी वंशी-ध्वनि सुनकर आओगे हमारे पास; तब हम भी तुम्हें उपदेश करेंगी कि लौट जाओ, घर को जाओ- शुश्रूषणं स्त्रीणां परो धर्मो ह्यमायया- जाओ-जाओ, सास-ससुर की सेवा करो, माँ-बाप की सेवा करो। हम कृष्ण-पदवी को प्राप्त हो जावेंगी और तुम, गोपीपदवी को प्राप्त हो जाओगे। वस्तु त एक ही है, मामला तो केवल नाम-रूप का है। ध्यान से बदलकर हम अपना कृष्णरूप और कृष्ण नाम बना लेंगी और हमारा ध्यान करते-करते तुम्हारा नामरूप गोपी हो जायेगा; और तुम व्याकुल होवेगे, और हम ऐसी ही तुमको सतायेंगी। यही हमारा तुम्हारा भविष्य होने वाला है; सावधान हो जाओ। आओ, रास करो, यह मुँह लटकाकर मत खड़े हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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