योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
पैंतीसवाँ अध्याय
कृष्ण महाराज की शिक्षा
स्पष्ट तो यह है कि हमारे विचार में कृष्ण महाराज ने कोई ऐसा मत नहीं चलाया जिसको हम उनके नाम से प्रसिद्ध करें। इसलिए शब्द कृष्णाइज्म का प्रयोग ही अशुद्ध और अनुचित है। यदि कृष्णाइज्म से उन्हीं उपदेशों का अभिप्राय है जो कृष्ण महाराज ने अर्जुन तथा अपने दूसरे सम्बन्धियों को यथासमय दिये और जिनमें प्राचीन वेद ग्रन्थों के निष्काम कर्म दर्शन पर जोर दिया गया है, तो कुछ हानि नहीं है क्योंकि कृष्ण नाम किसी विशेष धर्म का नहीं है जिसे कृष्ण महाराज ने चलाया हो। परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि निष्काम धर्म का जैसा प्रभावोत्पादक उपदेश कृष्ण महाराज के वाक्यों में मिलता है वैसा और किसी ऋषि-मुनि के उपदेश में नहीं मिलता। भगवद्गीता के पृथक-पृथक अध्याय यद्यपि भिन्न-भिन्न विषयों पर लिखे हुए हैं परन्तु सबका सारांश एकमात्र निष्काम धर्म की शिक्षा ही है। महाभारत में भी कृष्ण महाराज के भिन्न-भिन्न वाक्यों में निष्काम धर्म सबसे प्रधान है, उनकी प्रत्येक बात का मर्माशय यही है। भिन्न-भिन्न रीतियों से भिन्न-भिन्न प्रणाली में धर्म के भिन्न-भिन्न अंगों की व्याख्या करते हुए प्रायः प्रत्येक युक्ति का अंत निष्काम धर्म की प्रधानता पर होता है। भगवद्गीता के प्रत्येक अक्षर में निष्काम धर्म का राग अलापा गया है। न केवल उनके वचनों में, वरंच उनके कर्म और उनके व्यवहार में भी इसी शिक्षा का असर दिखाई देता है, जिससे हम यह कह सकते हैं कि झूठे त्याग और वैराग्य का खण्डन करते हुए निष्काम धर्म की प्रधानता को फैलाना और निष्काम दर्शन की व्याख्या करना यही कृष्ण महाराज के जीवन का उद्देश्य था और यही हमको उनके वचनों में जगह-जगह दिखाई देता है। जहाँ कहीं कभी उनको धार्मिक व्यवस्था देने की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने इसे सिद्धान्त बनाकर उसी के अनुसार अपना न्याय किया। इस शिक्षा का अनुकरण करना ही उन्होंने मनुष्य मात्र के जीवन का उद्देश्य ठहराया। इसी पर कार्य करने के लिए वह उन सब लोगों को प्रेरणा करते थे जिनका किसी-न-किसी प्रकार से उनसे संबंध रहा। मित्रों की संगति में, संबंधी व रिश्तेदारों के व्यवहारों में, अपने सेवकों तथा भक्तजनों के प्रश्नों के उत्तर में, राजसभाओं में, यज्ञादि तथा अन्यान्य धार्मिक कृत्यों के अवसर पर तथा शत्रुओं से युद्ध के समय, तात्पर्य यह कि जीवन की घटनाओं और हर बार पर उन्होंने इसी शिक्षा को अपना प्रधान लक्ष्य नियत कर लिया था। अंत में मृत्यु के समय जिस बधिक के बाण से वे घायल हुए, उसे भी इसी निष्काम धर्म का उपदेश करते हुए स्वर्ग को पधारे। |
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