विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
पञ्चम प्रकरण
पौगण्डावस्थालीला
पूर्वार्ध
कालियकृत स्तुति
इस सृष्टि में हम जन्म से ही अति क्रोधी सर्प हैं। हे भगवान्! हम आपकी माया से मोहित हैं। पकी माया का त्याग कैसे कर सकते हैं (जिसका कि ब्रह्मादि भी त्याग नहीं कर सके। अर्थात् आपके अनुग्रह के बिना हम उसका त्याग कैसे कर सकते हैं)।।58।। हे जगदीश्वर! हे सर्वज्ञ! आप ही उस माया का त्याग कराने में कारण हैं। (यदि हमें परतंत्र समझते हैं) तो हमारे ऊपर अनुग्रह कीजिए। (यदि हमें स्वतंत्र मानते हैं) तो हमको जो दंड देना उचित हो वह दीजिए।।59।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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