विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
दशम प्रकरण
महाभारत के युद्ध का अंत
भीष्मकृत स्तुति
(अब कहते हैं कि मैं कृतार्थ हूँ) मैं अब सकल भेदयुक्त मोह से रहित होकर उन जन्मरहित भगवान में लीन होता हूँ जो अपने से ही रचे गये प्रत्येक प्राणी के हृदय में विराजमान हैं, जैसे सूर्य एक ही होकर उपाधि के कारण अनेक प्रतीत होता है।।42।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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