विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
तीसरा अध्याय
किशोरलीला
द्वितीय प्रकरण
अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन
अक्रूरकृत स्तुति
(इसका कारण बतलाते हैं) सत्त्व, रज और तम आपकी शक्तिरूप प्रकृति के गुण हैं और उनमें स्थावर से लेकर ब्रह्मा जी पर्यन्त सब जीव अपनी उपाधि द्वारा प्रविष्ट हैं। (वे गुण प्रकृति में प्रविष्ट हैं और प्रकृति आप में प्रविष्ट है। अतः क्रम से उपाधि का विलय होने से सबका प्रवेश आपमें ही होता है)।।11।। (शंका- ‘आपकी प्रकृति’ यह कहने से प्रकृति के साथ मेरा संबंध प्रतीत होता है तो अन्य जीवों में और मुझ में क्या अंतर समझते हो? समाधान-) आपको नमस्कार है, आपकी दृष्टि अलिप्त अर्थात विषयासक्त नहीं है क्योंकि आप (अपने से भिन्न वस्तु का अभाव होने के कारण) सर्वात्मा और सब की बुद्धि के साक्षी हैं इस कारण आपकी बुद्धि विषयासक्त नहीं है। अविद्याजनित यह जन्म-मरण रूप संसार देवता, मनुष्य, पशु आदि शरीराभिमानियों को ही होता है, (आपको प्राप्त नहीं होता है इस कारण आप में और जीव में महान् अंतर है)।।12।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज