विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
प्रथम प्रकरण
भगवान का अवतार[1]
देवगणकृत स्तुति
येऽन्येऽरविन्दाक्ष विमुक्तमानिनस्त्वय्यस्तभावादविशुद्धबुद्धयः। (शंका- विवेकी पुरुषों को भजन करने की क्या आवश्यकता है? वे तो मुक्त ही हैं! समाधान-) हे कमलनयन! जो पुरुष अपने को स्वयं ही मुक्त मानने वाले हैं और इसीलिए जिन्होंने आपके चरणों का आदर नहीं किया है तथा आपकी भक्ति न होने के कारण जिनकी बुद्धि शुद्ध नहीं है वे बहुत जन्मों के तप से अच्छे पद को (मोक्ष के समीप की पदवी को) प्राप्त करके भी वहाँ से नीचे (नरक में) गिर पड़ते हैं। (विघ्नों से पराजित हो जाते हैं)।।32।। हे माधव! (जैसे आपसे विमुक अभक्त अपने अधिकार से गिर जाते हैं) उस प्रकार आपके भक्त आपके प्रति दृढ़ प्रेम करने के कारण कदापि भक्तिमार्ग- (भजनाधिकार-) से भ्रष्ट नहीं होते किन्तु आपके द्वारा रक्षित वे भक्त (कालकर्मादिके) भय से रहित होकर विघ्नों की सेना के स्वामियों के भी मस्तक पर चरण रखकर विचरते हैं (अर्थात् आपके पद को प्राप्त होते हैं)।।33।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत पुराण 10।1 और 2
संबंधित लेख
प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज