विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
षष्ठ प्रकरण
गोपियों से विदाई
गोपीक्रन्दन
हे विधातः! तुम बड़े क्रूर हो, क्योंकि तुम अपने ही दिये हुए हमारे चक्षुओं को मूर्खों के समान हरकर ले जाते हो। (यदि कहो कि श्रीकृष्ण को अक्रूर ले जाता है इसमें हमारा क्या दोष? तो सुनो-) अक्रूर नाम से तुम ही आये हो दूसरा नहीं। (यदि कहो मैं तो श्रीकृष्ण को ले जाता हूँ तुम्हारे नेत्रों को नहीं, तो यह कथन ठीक नहीं; क्योंकि) तुम्हारे दिये हुए चक्षुओं से हम श्रीकृष्ण के किसी अंग (नेत्र-मुखादि) में तुम्हारी अखिल सृष्टि की चतुराई को देखती थीं और अब उनके वियोग से तुम हमको अंधी कर देते हो, क्योंकि ऐसा दूसरा दर्शनीय नहीं है (भाव यह है कि तुम इस कारण भगवान् का वियोग करके हमको अंधी करते हो, हमने तुम्हारी सब चतुराइयों का रहस्य जान लिया)।।21।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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