विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
पंचम प्रकरण
रासलीला
उत्तरार्ध
युग्मश्लोकी गीपीगीत
(अति संभ्रम से समीप में आये हुए भगवान को देखकर कहने लगीं) जिनके नेत्र मद से किश्चित् झूम रहे हैं, जो अपने प्रेमियों का आदर करने वाले हैं, जो वनमाला पहने हुए हैं, जिनका मुख पके हुए बेर के समान पाण्डुवर्ण है ऐसे श्रीकृष्ण जी सुकुमार कपोलों को सुवर्ण के कुण्डलों से शोभित करते हुए आ रहे हैं, जिनका चलना गजराज के समान है- जिनका मुख चंद्र के समान प्रसन्न है ऐसे यदुपति (श्रीकृष्ण) व्रज के गौओं तथा हमारे दिनताप और विरहताप को दूर करते हुए अत्यंत समीप आ रहे हैं, जैसे दिन के ताप को दूर करने के लिए सायंकाल में चंद्रमा का उदय होता है वैसे ही इनका उदय हुआ है। (ऐसे कृष्ण के विरह को हम कैसे सहें?)।।24-25।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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