विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
तृतीय प्रकरण
रास का आह्वान्
गोपीकृत स्तुति
(चौथे यूत की प्रमुख गोपी कहती है-) हे दुःखनाशक! आपकी उपासना की आशा रखती हुई हम अपने घरों को छोड़कर (योगियों की भाँति) आपके चरणों के निकट आयी हैं। आपके सुंदर हास्य की छटा देखकर हमारा अंतःकरण तीव्र इच्छा के वेग से तप्त हो गया है, अब हे पुरुषभूषण! हमें अपनी दासियाँ बना लीजिए।।38।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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