भागवत स्तुति संग्रह पृ. 101

भागवत स्तुति संग्रह

दूसरा अध्याय

माधुर्यलीला
प्रथम प्रकरण
माधुर्य का प्रादुर्भाव

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वेणुगीत

इन कारणों से समझ लेना चाहिए कि बहिर्मुख वृत्तिवालो की दृष्टि भगवान के विषय में बिलकुल दूषित है। जो पुरुष श्रीकृष्ण भगवान को साक्षात् पूर्णब्रह्म अथवा पूर्णावतार नहीं मानते और गोप-गोपियों को भगवान् के अंश या विभूति नहीं मानते उन्हें अनधिकारी होने के कारण यह शास्त्र पढ़ना ही नहीं चाहिए। जैसे गीता में भगवान् स्वयं कहते हैं-

 
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन।
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति।।[1]

प्रस्तुत विषय में श्रीकृष्ण भगवान् के अद्भुत चरित्र पढ़ने अथवा सुनने से यह शंका नहीं हती कि वे अचिन्त्य अद्भुत शक्तिशाली पूर्णावतार नहीं थे। सब पुराण, स्मृतियाँ और वेद इसका समर्थन करते हैं।[2] अब रही गोप और गोपियों की बात, इस विषय में दशम स्कन्ध के प्रथम अध्याय में कह दिया गया है कि ये सब देवता और देवियों के अवतार थे।[3] गोपियों के कोटिशः यूथ होते हुए भी चार यूथ (भेद) मुख्य थे। पहला यूथ तो उपर्युक्त देवकन्याओं का था, दूसरा ऋषिचारियों का[4]था।

इसकी कथा पुराणों में से इस प्रकार आयी है कि भगवान श्रीरामचंद्र महाराज जब दण्डकारण्य में गये वहाँ कुछ ऋषियों ने भगवान का दर्शन किया और उनके सर्वांगसुंदर सुमनोहर विग्रह को देखकर भगवान को आलिंगन करने की इच्छा हुई। भगवान श्रीरामचंद्र ने विचारा कि शुष्क देह से आलिंगन करने पर संभवतः दिव्य रसास्वाद न मिले, इस कारण उन ऋषियों को सुंदर गोपियों का स्वरूप देखकर श्रीकृष्ण रूप में आलिंगन किया। इन ऋषियों की ऐसी इच्छा करना कोई आश्चर्य नहीं है। भगवद्विग्रह इतर मनुष्यादि के समान नहीं था। वह चिन्मय था और जहाँ तक कल्पना की जा सकती है उससे अनन्त गुना सौन्दर्यमय था। ऐसे विग्रह का स्पर्श करने की किसकी इच्छा नहीं होगी?[5]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 18।67
  2. अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्। परं भावमजान्तो मम भूतमहेश्वरम्।। (गीता 9।11) देखिये कृष्णोपनिषत्, गोपालतापिनीय, रामतापिनीय और रामोपनिषत्।
  3. भा. 10।1।21-22 और कृष्णोपनिषत्।
  4.  तदा महर्षयः सर्वे दण्डकारण्यवासिनः।
     दृष्टवा रामं हरिं तत्र भोक्तुमैच्छन् सुविग्रहम्।।
     ते सर्वे स्त्रीत्वमापन्नाः समुद्भूताश्च गोकुले।
     हरिं संप्राप्य कामने ततो मुक्ता भवार्णवात्। (पद्मोत्तरखण्ड)

  5. यही भाव रुक्मिणी जी ने अपने पत्र में लिखा था। देखिये भा. 10।52।38। भगवद्गीता के अ. 6।28 में जिस ‘ब्रह्मसंस्पर्श’ सुख को योगैकगम्य बतलाया है उसको गोपियाँ अनायास प्राप्त कर सकीं।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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