- महाभारत आश्वमेधिक पर्व के वैष्णव धर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 92 में ब्रह्महत्या के समान पाप का वर्णन हुआ है।[1]
विषय सूची
ब्रह्महत्या के समान पाप का वर्णन
युधिष्ठिर ने पूछा– भगवन! मनुष्य ब्राह्मण की हिंसा किये बिना ही ब्रह्महत्या के पाप से कैसे लिप्त हो जाता है, इस विषय को पूर्णतया ठीक–ठीक बताने की कृपा कीजिये।
श्रीभगवान ने कहा– राजन! जो जीविका रहित ब्राह्मण को स्वयं ही भिक्षा देने के लिये बुलाकर पीछे इनकार कर देता है, उसे ब्रह्म हत्यारा कहते हैं। भरतनन्दन! जो दुष्ट बुद्धिवाला पुरुष मध्यस्थ और और ब्रह्मवेत्ता ब्राह्मण की जीविका छीन लेता है, उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं। जो क्रोध में भरकर किसी आश्रम, घर, गांव अथवा नगर में आग देता है, उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं। पृथ्वीनाथ! प्यास से तड़पते हुए गो समुदाय को जो पानी के निकट पहुँचने में बाधा डालता है, उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं। जो परम्परागत वैदिक श्रुतियों और ऋषिप्रणीत सच्छास्त्रों पर बिना समझे– बूझे दोषारोपण करता है, उसे भी ब्रह्महत्यारा कहते हैं। जो अन्धे, पंगु और गूंगे मनुष्य का सर्वस्व हरण कर लेता है, उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं।
जो मूर्खतावाश गुरु को ‘तू’ कहकर पुकारता है, हुंकार के द्वारा उनका तिरस्कार करता है तथा उनकी आज्ञा का उल्लंघन करके मनमाना बर्ताव करता है, उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं। जो दीन मनुष्य किंचित प्राप्त वस्तुओं को ही अपने लिये सार-सर्वस्व समझता है और उनके नाश से जिसकी दुर्दशा हो जाती है, ऐसे मनुष्य का जो पुरुष सर्वस्व छीन लेता है, उसे भी ब्रह्मघाती कहते हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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अश्वमेध पर्व
युधिष्ठिर का शोकमग्न होकर गिरना और धृतराष्ट्र का उन्हें समझाना
| श्रीकृष्ण और व्यास का युधिष्ठिर को समझाना
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| मरुत्त की सम्पत्ति से बृहस्पति का चिन्तित होना
| बृहस्पति का इन्द्र से अपनी चिन्ता का कारण बताना
| इन्द्र की आज्ञा से अग्निदेव का मरुत्त के पास संदेश लेकर जाना
| अग्निदेव का संवर्त के भय से लौटना और इन्द्र से ब्रह्मबल की श्रेष्ठता बताना
| इन्द्र का गन्धर्वराज को भेजकर मरुत्त को भय दिखाना
| संवर्त का मन्त्रबल से देवताओं को बुलाना और मरुत्त का यज्ञ पूर्ण करना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को इन्द्र द्वारा शरीरस्थ वृत्रासुर संहार का इतिहास सुनाना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को मन पर विजय पाने का आदेश
| श्रीकृष्ण द्वारा ममता के त्याग का महत्त्व
| श्रीकृष्ण द्वारा कामगीता का उल्लेख तथा युधिष्ठिर को यज्ञ हेतु प्रेरणा
| युधिष्ठिर द्वारा ऋषियों की विदाई और हस्तिनापुर में प्रवेश
| युधिष्ठिर के धर्मराज्य का वर्णन
| श्रीकृष्ण का अर्जुन से द्वारका जाने का प्रस्ताव
अनुगीता पर्व
अर्जुन का श्रीकृष्ण से गीता का विषय पूछना
| श्रीकृष्ण का अर्जुन से सिद्ध, महर्षि तथा काश्यप का संवाद सुनाना
| सिद्ध महात्मा द्वारा जीव की विविध गतियों का वर्णन
| जीव के गर्भ-प्रवेश का वर्णन
| आचार-धर्म, कर्म-फल की अनिवार्यता का वर्णन
| संसार से तरने के उपाय का वर्णन
| गुरु-शिष्य के संवाद में मोक्ष प्राप्ति के उपाय का वर्णन
| ब्राह्मणगीता, एक ब्राह्मण का पत्नी से ज्ञानयज्ञ का उपदेश करना
| दस होताओं से सम्पन्न होने वाले यज्ञ का वर्णन
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| मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओं का वर्णन
| यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय संवाद का वर्णन
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| परशुराम के द्वारा क्षत्रिय कुल का संहार
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| परशुराम का तपस्या के द्वारा सिद्धि प्राप्त करना
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| ब्राह्मण का पत्नी के प्रति अपने ज्ञाननिष्ठ स्वरूप का परिचय देना
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| उत्तंक का दिव्यकुण्डल लाने के लिए सौदास के पास जाना
| उत्तंक का सौदास से उनकी रानी के कुण्डल माँगना
| उत्तंक का कुण्डल हेतु रानी मदयन्ती के पास जाना
| उत्तंक का कुण्डल लेकर पुन: सौदास के पास लौटना
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| श्रीकृष्ण का वसुदेव को महाभारत युद्ध का वृत्तान्त संक्षेप में सुनाना
| श्रीकृष्ण का वसुदेव को अभिमन्यु वध का वृत्तांत सुनाना
| वसुदेव आदि यादवों का अभिमन्यु के निमित्त श्राद्ध करना
| व्यास का उत्तरा और अर्जुन को समझाकर युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ की आज्ञा देना
| युधिष्ठिर का भाइयों से परामर्श तथा धन लाने हेतु प्रस्थान
| पांडवों का हिमालय पर पड़ाव और उपवासपूर्वक रात्रि निवास
| शिव आदि का पूजन करके युधिष्ठिर का धनराशि को ले जाना
| उत्तरा के मृत बालक को जिलाने के लिए कुन्ती की श्रीकृष्ण से प्रार्थना
| परीक्षित को जिलाने के लिए सुभद्रा की श्रीकृष्ण से प्रार्थना
| उत्तरा की श्रीकृष्ण से पुत्र को जीवित करने की प्रार्थना
| श्रीकृष्ण का उत्तरा के मृत बालक को जीवन दान देना
| श्रीकृष्ण द्वारा परीक्षित का नामकरण तथा पाण्डवों का हस्तिनापुर आगमन
| श्रीकृष्ण द्वारा पांडवों का स्वागत
| व्यास तथा श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को यज्ञ के लिए आज्ञा देना
| व्यास की आज्ञा से अश्व की रक्षा हेतु अर्जुन की नियुक्ति
| व्यास द्वारा भीम, नकुल तथा सहदेव की विभिन्न कार्यों हेतु नियुक्ति
| सेना सहित अर्जुन के द्वारा अश्व का अनुसरण
| अर्जुन के द्वारा त्रिगर्तों की पराजय
| अर्जुन का प्राग्ज्यौतिषपुर के राजा वज्रदत्त के साथ युद्ध
| अर्जुन के द्वारा वज्रदत्त की पराजय
| अर्जुन का सैन्धवों के साथ युद्ध
| दु:शला के अनुरोध से अर्जुन और सैन्धवों के युद्ध की समाप्ति
| अर्जुन और बभ्रुवाहन का युद्ध एवं अर्जुन की मृत्यु
| अर्जुन की मृत्यु से चित्रांगदा का विलाप
| अर्जुन की मृत्यु पर बभ्रुवाहन का शोकोद्गार
| उलूपी का संजीवनी मणि द्वारा अर्जुन को पुन: जीवित करना
| उलूपी द्वारा अर्जुन की पराजय का रहस्य बताना
| अर्जुन का पुत्र और पत्नी से विदा लेकर पुन: अश्व के पीछे जाना
| अर्जुन द्वारा मगधराज मेघसन्धि की पराजय
| अश्व का द्वारका, पंचनद तथा गांधार देश में प्रवेश
| अर्जुन द्वारा शकुनिपुत्र की पराजय
| युधिष्ठिर की आज्ञा से यज्ञभूमि की तैयारी
| युधिष्ठिर के यज्ञ की सजावट और आयोजन
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर से अर्जुन का संदेश कहना
| अर्जुन के विषय में श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर की बातचीत
| अर्जुन का हस्तिनापुर आगमन
| उलूपी और चित्रांगदा सहित बभ्रुवाहन का स्वागत
| अश्वमेध यज्ञ का आरम्भ
| युधिष्ठिर का ब्राह्मणों और राजाओं को विदा करना
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