यमलोक के मार्ग-कष्ट से बचने के उपाय

महाभारत आश्वमेधिक पर्व के वैष्णव धर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 92 में यमलोक के मार्ग-कष्ट से बचने के उपाय वर्णन हुआ है।[1]

कृष्ण कथन

पाण्‍डुपुत्र! जो ब्राह्मणों को नाना प्रकार की वस्‍तुएँ दान देते हैं, वे सुखपूर्वक उनके फल को प्राप्‍त करते हैं। जो लोग ब्राह्मणों को, उनमें भी विशेषत: श्रोत्रियों को अत्‍यन्‍त प्रसन्‍नता के साथ अच्‍छी प्रकार से बनाये हुए उत्तम अन्‍न का भोजन कराते हैं, वे महात्‍मा पुरुष विचित्र विमानों पर बैठकर यमलोक की यात्रा करते हैं।

उस महान पथ में सुन्‍दर स्‍त्रियाँ और अप्‍सराएँ उनकी सेवा करती रहती हैं। जो प्रतिदिन निष्‍कपट भाव से सत्‍यभाषण करते हैं, वे निर्मल बादलों के समान बैल जुते हुए विमानों द्वारा यमलोक में जाते हैं। जो ब्राह्मणों को और उनमें भी विशेषत: श्रोत्रियों को कपिला आदि गौओं का पवित्र दान देते रहते हैं, वे निर्मल कान्‍ति वाले बैल जुते हुए विमानों में बैठकर यमलोक को जाते हैं। वहाँ अप्‍सराएँ उनकी सेवा करती रहती हैं।[1]

जो ब्राह्मणों को छाता, जूता, शय्या, आसन, वस्‍त्र और आभूषण दान करते हैं, वे सोने के छत्र लगाये उत्तम गहनों से सज– धजकर घोड़े, बैल अथवा हाथी की सवारी से धर्मराज के सुन्‍दर नगर में प्रवेश करते हैं। जो सुगन्‍धित फूल और फल का दान करते हैं, वे मनुष्‍य हंसयुक्‍त विमानों के द्वारा धर्मराज के नगर में जाते हैं। जो ब्राह्मणों को घी में तैयार किये हुए भाँति– भाँति के पकवान दान करते हैं, वे वायु के समान वेग वाले सफेद विमानों पर बैठकर नाना प्राणियों से भरे हुए यमपुर की यात्रा करते हैं। जो समस्‍त प्राणियों को जीवन दान देने वाले जल का दान करते हैं, वे अत्‍यन्‍त तृप्‍त होकर हंस जुते हुए विमानों द्वारा सुखपूर्वक धर्मराज के नगर में जाते हैं।

श्रीकृष्ण द्वारा मार्ग के कष्ट से बचने के उपाय

राजन! जो लोग शान्‍त भाव से युक्‍त होकर श्रोत्रिय ब्राह्मण को तिल अथवा तिल की गौ या घृत की गौ का दान करते हैं, वे सूर्य मण्‍डल के समान तेजस्‍वी निर्मल विमानों द्वारा गन्‍धर्वों के गीत सुनते हुए यमराज के नगर में जाते हें। जिन्‍होंने इस लोक में बावड़ी, कुएं, तालाब, पोखरे, पोखरे, पोखरियां और जल से भरे हुए जलाशय बनवाये हैं, वे चन्‍द्रमा के समान उज्‍जवल और दिव्‍य घण्‍टानाद से निनादित विमानों पर बैठकर यमलोक में जाते हैं; उस समय वे महात्‍मा नित्‍य तृप्‍त और महान कान्‍तिमान दिखायी देते हैं तथा दिव्‍य लोक के पुरुष उन्‍हें ताड़ के पंखे और चंवर डुलाया करते हैं। जिनके बनवाये हुए देव मंदिर यहाँ अत्‍यंत चित्र– विचित्र, विस्तृत, मनोहर, सुंदर और दर्शनीय रूप में शोभा पाते हैं, वे सफेद बादलों के समान कान्‍तिमान एवं हवा के समान वेग वाले विमानों द्वारा नाना जनपदों से युक्‍त यमलोक की यात्रा करते हैं।

वहाँ जाने पर वे यमराज को प्रसन्‍नचित्त और सुख पूर्वक बैठे हुए देखते हैं तथा उनके द्वारा सम्‍मानित होकर देव लोक के निवासी होते हैं। खड़ाऊं और जल– दान करने वाले मनुष्‍य को उस मार्ग में सुख मिलता है। वे उत्तम रथ पर बैठकर सोने के पीढ़े पर पैर रखे हुए यात्रा करते हैं। जो लोग बड़े– बड़े बगीचे बनवाते और उसमें वृक्षों के पौधे रोपते हैं तथा शान्‍तिपूर्वक जल से सींच कर उन्‍हें फल– फूलों सं सुशोभित कर के बढ़ाया करते हैं, वे दिव्‍य वाहनों पर सवार हों आभूषणों से सज– धज कर वृक्षों की अत्‍यंत रमणीय एवं शीतल छाया में होकर दिव्‍य पुरुषों द्वारा बारंबार सम्‍मान पाते हुए यमलोक में जाते है। जो ब्राह्मणों को घोड़े, बैल अथवा हाथी की सवारी दान करते हैं, वे सोने के समान विमानों द्वारा यमलोक में जाते हैं।

भूमिदान करने वाले लोग समस्‍त कामनाओं से तृप्‍त होकर बैल जुते हुए सूर्य के समान तेजस्‍वी विमानों द्वारा उस लोक की यात्रा करते हैं। जो श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों को अत्‍यन्‍त भक्‍तिपूर्वक सुगन्‍धित पदार्थ तथा पुष्‍प प्रदान करते हैं, वे सुगन्‍ध पूर्ण सन्‍दर वेश धारणकर उत्तम कान्‍ति से देदीप्‍यमान हो सुन्‍दर हार पहने हुए विचित्र विमानों पर बैठकर धर्मराज के नगर में जाते हैं। दीप– दान करने वाले पुरुष सूर्य के समान तेजस्‍वी विमानों से दसों दिशाओं को देदीप्‍यमान करते हुए साक्षात अग्‍नि के समान कान्‍तिमान स्‍वरूप से यात्रा करते हैं।[2]

जो घर एवं आश्रय स्‍थान का दान करने वाले हैं, वे सोने के चबूतरों से युक्‍त और प्रात: कालीन सूर्य के समान कान्‍ति वाले गृहों के साथ धर्मराज के नगर में प्रवेश करते हैं। जो ब्राह्मणों को पैरों में लगाने के लिये उबटन, सिर पर मलने के लिये तेल, पैर धोने के लिये जल और पीने के लिये शर्बत देते हैं, वे घोड़े पर सवार होकर यमलोक की यात्रा करते हैं। जो रास्‍ते के थके– मांदे दुर्बल ब्राह्मण को ठहरने की जगह देकर उन्‍हें आराम पहुँचाते हैं, वे चक्रवाक से जुते हुए विमान पर बैठकर यात्रा करते हैं। जो घर पर आये हुए ब्राह्मणों को स्‍वागत पूर्वक आसन देकर उनकी विधिवत पूजा करते हैं, वे उस मार्ग पर आनन्‍द के साथ जाते हैं। जो प्रतिदिन ‘नम: सर्वसहाभ्‍यश्‍च’ ऐसा कहकर गौ को नमस्‍कार करता है, वह यमपुर के मार्ग पर सुखपूर्वक यात्रा करता है।

प्रतिदिन प्रात:काल बिछौने से उठकर जो ‘नमोस्‍तु विप्रदत्‍तायै’ कहते हुए पृथ्‍वी पर पैर रखता है, वह सब कामनाओं से तृप्‍त और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित होकर दिव्‍य विमान के द्वारा सुखपूर्वक यमलोक को जाता है। जो सबेरे और शाम को भोजन करने क सिवा बीच में कुछ नहीं खाता तथा दम्‍भ और असत्‍य के बचे रहते हैं, वे भी सारयुक्‍त विमान के द्वारा सुखपूर्वक यात्रा करते हैं। जो दिन–रात में केवल एक बार भोजन करते हैं और दम्‍भ तथा असत्‍य से दूर रहते हैं, वे हंसयुक्‍त विमानों के द्वारा बड़े आराम के साथ यमलोक को जाते हैं। जो जितेन्‍द्रीय होकर केवल चौथे वक्‍त अन्‍न ग्रहण करते हैं अर्थात एक दिन उपवास करके दूसरे दिन शाम को भोजन करते हैं, वे मयूर युक्‍त विमानों के द्वारा धर्मराज के नगर में जाते हैं।

जो जितेन्‍द्रीय पुरुष यहाँ तीसरे दिन भोजन करते हैं, वे भी सोने के समान उज्‍ज्‍वल हाथी के रथ पर सवार हो यमलोक जाते हैं। जो एक वर्ष तक छ: दिनों के बाद भोजन करता है और काम– क्रोध से रहित, पवित्र तथा सदा जितेन्‍द्रीय रहता है, वह हाथी के रथ पर बैठकर जाता है, रास्‍ते में उसके लिये जय– जयकार के शब्‍द होते रहते हैं। एक पक्ष उपवास करने वाले मनुष्‍य सिंह– जुते हुए विमान के द्वारा धर्मराज के उस रमणीय नगर को जाते हैं, जो दिव्‍य स्‍त्री समुदाय से सेवित है। जो इन्‍द्रियों को वश में रखकर एक मास तक उपवास करते हैं, वे भी सूर्योदय की भाँति प्रकाशित विमानों के द्वारा यमलोक में जाते हैं। जो गौओं के लिये, स्‍त्री के लिये और ब्राह्मण लिये अपने प्राण दे देते हैं, वे सूर्य के समान कान्‍तिमान और देवताओं से सेवित हो यमलोक की यात्रा करते हैं।

जो श्रेष्‍ठ द्विज अधिक दक्षिणा वाले यज्ञों का अनुष्‍ठान करते हैं, वे हंस और सारसों से युक्‍त विमानों के द्वारा उस मार्ग पर जाते हैं। जो दूसरों को कष्‍ट पहुँचाये बिना ही अपने कुटुम्‍ब का पालन करते हैं, वे सुवर्णमय विमानों के द्वारा सुखपूर्वक यात्रा करते हैं।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-16
  2. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-17
  3. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-18

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