ब्राह्मण की महिमा

महाभारत आश्वमेधिक पर्व के वैष्णव धर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 92 में ब्राह्मण की महिमा का वर्णन हुआ है।[1]

कृष्ण द्वारा ब्राह्मण की महिमा का वर्णन

महाभारत, मनुस्‍मृति, अंगों सहित चारों वेद और आयुर्वेद शास्त्र– ये चारों सिद्ध उपदेश देने वाले हैं, अत: तर्क द्वारा इनका खण्‍डन नहीं करना चाहिये। धर्म को जानने वाले पुरुष को देव सम्‍बन्‍धी कार्य में ब्राह्मणों की परीक्षा करने से यजमान की बड़ी निन्‍दा होती है। ब्राह्मणों की निन्‍दा करने वाला मनुष्‍य कुत्‍ते की योनि में जन्‍म लेता है, उस पर दोषारोपण करने से गदहा होता है और उसका तिरस्‍कार करने से कृमि होता है तथा उसके साथ द्वेष करने से वह कीड़े की योनि में जन्‍म पाता है। ब्राह्मण चाहे दुराचारी हों या सदाचारी, संस्‍कारहीन हों या संस्‍कारों से सम्‍पन्न, उनका अपमान नहीं करना चाहिये; क्‍योकि वे भस्‍म से ढ़की हुई आग के तुल्‍य हैं।

बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि क्षत्रिय, सांप और विद्वान ब्राह्मण यदि कमज़ोर हों तो भी कभी उनका अपमान न करें। क्‍योंकि वे तीनों अपमानित होने पर मनुष्‍य को भस्‍म कर डालते हैं। इसलिये बुद्धिमान पुरुष को प्रयत्‍नपूर्वक उनके अपमान से बचना चाहिये। जिस प्रकार सभी अवस्‍थाओं में अग्‍नि महान देवता हैं, उसी प्रकार सभी अवस्‍थाओं में ब्राह्मण महान देवता हैं। अंगहीन, काने, कुबड़े और बौने– इन सब ब्राह्मणों को देवकार्य में वेद के पारंगत विद्वान ब्राह्मणों के साथ नियुक्‍त करना चाहिये। उन पर क्रोध न करे, न उनका अनिष्‍ट ही करे; क्‍योंकि ब्राह्मण क्रोधरूपी शस्‍त्र से ही प्रहार करते हैं, वे शस्‍त्र हाथ में रखने वाले नहीं हैं। जैसे इन्‍द्र असुरों का वज्र से नाश करते हैं; क्‍योंकि ब्राह्मण जाति मात्र से ही महान देवभाव को प्राप्‍त हो जाता है।

कुन्‍तीनन्‍दन! सारे प्राणियों के धर्मरूपी खजाने की रक्षा करने के लिये साधारण ब्राह्मण भी समर्थ हैं, फिर जो नित्‍य संध्‍योपासन करते हैं, उनके विषय में तो कहना ही क्‍या है? जिसके मुख से स्‍वर्गवासी देवगण हविष्‍य का और पितर कव्‍य का भक्षण करते हैं, उससे बढ़कर कौन प्राणी हो सकता है? ब्राह्मण जन्‍म से ही धर्म की सनातन मूर्ति है। वह धर्म के लिये ही उत्‍पन्‍न हुआ है और वह ब्रह्मभाव को प्राप्‍त होने में समर्थ है ब्राह्मण तो अपना ही खाता, अपना ही पहनता और अपना ही देता है। दूसरे मनुष्‍य ब्राह्मण की दया से ही भोजन पाते हैं। अत: ब्राह्मणों का कभी अपमान नहीं करना चाहिये; क्‍योंकि वे सदा ही मुझमें भक्‍ति रखने वाले होते हैं। जो ब्राह्मण बृहदारण्‍यक– उपनिषद में वर्णित मेरे गूढ़ और निष्‍फल स्‍वरूप का ज्ञान रखते हैं, उनका यत्‍नपूर्वक पूजन करना।

पाण्‍डुनन्‍दन! घर पर या विदेश में, दिन में या रात में मेरे भक्‍त ब्राह्मणों की निरन्‍तर श्रद्धा के साथ पूजा करते रहना चाहिये ब्राह्मण के समान कोई देवता नहीं है, ब्राह्मण के समान कोई गुरु नहीं है, ब्राह्मण से बढ़कर बन्‍धु नहीं है और ब्राह्मण से बढ़कर कोई खजाना नहीं है। कोई तीर्थ और पुण्‍य भी ब्राह्मण से श्रेष्‍ठ नही है। ब्राह्मण से बढ़कर पवित्र कोई नहीं है और ब्राह्मण से बढ़कर पवित्र करने वाला कोई नहीं है। ब्राह्मण से श्रेष्‍ठ कोई धर्म नहीं और ब्राह्मण से उत्तम कोई गति नहीं है। पाप कर्म के कारण नरक में गिरते हुए मनुष्‍य का एक सुपात्र ब्राह्मण भी उद्धार कर सकता है।[1]

सुपात्र ब्राह्मणों में भी जो बाल्‍यकाल से ही अग्‍निहोत्र करने वाले, शुद्र का अन्‍न त्‍याग देने वाले तथा शान्‍त और मेरे भक्‍त हैं एवं सदा मेरी पूजा किया करते हैं, उनको दिया हुआ अक्षय होता है। मेरे भक्‍त ब्राह्मण को दान देकर उसकी पूजा करने, सिर झुकने, सत्‍कार करने, बातचीत करने अथवा दर्शन करने से वह मनुष्‍य को दिव्‍य लोक में पहुँचा देता है। जो लोग मेरे गुण और लीलाओं का पाठ करते हैं तथा मुझे नमस्‍कार करते और मेरा ध्‍यान करते हैं, उनका दर्शन और स्‍पर्श करने वाला मनुष्‍य सब पापों से मुक्‍त हो जाता है। जो मेरे भक्त हैं, जिनके प्राण मुझमें ही लगे हुए हैं, जो मेरी महिमा का गान करते हैं और मेरी शरण में पड़े रहते हैं, जिनकी उत्‍पत्ति शुद्ध रज और वीर्य से हुई है, जो वेद के विद्वान, जितेन्‍द्रिय तथा सदा शूद्रान्‍न से बचे रहने वाले हैं, वे दर्शन मात्र से पवित्र कर देते हैं। ऐसे लोगों के घर पर उपस्‍थित होकर भक्ति पूर्वक विशेष रूप से दान देना चाहिये।

वह दान साधारण की अपेक्षा करोड़ गुना फल देने वाला माना गया है। राजेन्‍द्र! जागते अथवा सोते समय, परदेश में अथवा घर रहते समय जिस ब्राह्मण के हृदय से उसकी भक्‍ति– भावना के कारण मैं कभी दूर नहीं होता, ऐसा वह श्रेष्‍ठ ब्राह्मण पूजन, दर्शन, स्‍पर्श अथवा सम्‍भाषण करने मात्र से मनुष्‍य को सदा पवित्र कर देता है। पाण्‍डव! इस प्रकार सब अवस्‍थाओं में मरे भक्‍तों को दिये हुए सब प्रकार के दान स्‍वर्ग मार्ग प्रदान करने वाले होते हैं।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-10
  2. महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 92 वैष्णव धर्म पर्व भाग-11

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