गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 118

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

पन्द्रहवाँ अध्याय

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तो फिर कौन जानता है?
ज्ञानरूपी नेत्र वाले विवेकी मनुष्य ही जानते हैं।।10।।

ज्ञाननेत्र किसके खुलते हैं और किसके नहीं खुलते भगवन्?
जिन्होंने अपने अन्तःकरण को शुद्ध कर लिया है अर्थात् नित्यप्राप्त को महत्त्व दिया है, ऐसे यत्नशील योगीलोग तो अपने-आपमें स्थित तत्त्व को जानते हैं अर्थात् उनके तो ज्ञाननेत्र खुलते हैं; पर जिन्होंने अपना अन्तःकरण शुद्ध नहीं किया है अर्थात् स्वतः प्राप्त विवेक का आदर नहीं किया है, ऐसे अविवेकी मनुष्य यत्न करने पर भी इस तत्त्व को नहीं जानते अर्थात्! उनके ज्ञाननेत्र नहीं खुलते।।11।।

अपने-आपमें स्थित तत्त्व क्या है?
मैं ही हूँ। सूर्य में आया हुआ जो तेज सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है और जो तेज चन्द्रमा में है तथा जो तेेज अग्नि में है, उसको तू मेरा ही तेज जान। तात्पर्य है कि सूर्य, चन्द्र और अग्नि में मैं ही तेजरूप से स्थित होकर सम्पूर्ण संसार को प्रकाशित करता हूँ।।12।।

आप और क्या करते हैं भगवन्?
मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपनी शक्ति से सम्पूर्ण प्राणियों को धारण करता हूँ और मैं ही रसमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।।13।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
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अध्याय 4 44
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