भोगों की कामनावालों को भी शान्ति की प्राप्ति कैसे हो?
उनको तो त्याग से ही शान्ति प्राप्त होगी। जो मनुष्य सम्पूर्ण कामनाओं का तथा स्पृहा का त्याग करके अहंता-ममता से रहित होकर विचरता है, उसको शान्ति प्राप्त हो जाती है।।71।।
अहंता-ममता से रहित होने पर उसकी स्थिति कहाँ होती है?
उसकी स्थिति ब्रह्म में होती है। हे पार्थ! यही ब्राह्मीस्थिति है। इसको प्राप्त होने पर मनुष्य कभी मोहित नहीं होता। यदि मनुष्य इस ब्राह्मी-स्थिति में अन्तकाल में भी स्थित हो जाय अर्थात् अन्तकाल में भी अहंता-ममतारहित हो जाय तो वह निर्वाण (शान्त) ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।।72।।
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