और आप क्या काम करते हैं?
प्राणियों के शरीर में रहने वाला मैं ही प्राण-अपान से युक्त वैश्वानर (जठराग्नि) बनकर प्राणियों के द्वारा खाये गये चार प्रकार से (भोज्य, पेय, चोष्य और लेह्य) अन्न को पचाता हूँ।।14।।
और आपकी क्या विलक्षणता है?
मैं ही सबके हृदय में रहता हूँ। मेरे से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (संशय आदि दोषों का नाश) होता है। सम्पूर्ण वेदों के द्वारा मैं ही जाननेयोग्य हूँ। वेदों के तत्त्व का निर्णय करने वाला और वेदों को जानने वाला भी मैं हूँ।।15।।
आप जिनके हृदय में विराजमान हैं, वे सब कौन हैं?
इस मनुष्यलोक में क्षर (विनाशी) और अक्षर (अविनाशी) ये दो प्रकार के पुरुष हैं। इनमें सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर विनाशी और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है।।16।।
क्षर और अक्षर के सिवाय और भी कोई है?
हाँ, क्षर और अक्षर से अन्य उत्तम पुरुष है, जो संसार में परमात्मा नाम से कहा गया है और जो त्रिलोकी का भरण-पोषण करने वाला अविनाशी ईश्वर है।।17।।
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