गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 119

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

पन्द्रहवाँ अध्याय

Prev.png

और आप क्या काम करते हैं?
प्राणियों के शरीर में रहने वाला मैं ही प्राण-अपान से युक्त वैश्वानर (जठराग्नि) बनकर प्राणियों के द्वारा खाये गये चार प्रकार से (भोज्य, पेय, चोष्य और लेह्य) अन्न को पचाता हूँ।।14।।

और आपकी क्या विलक्षणता है?
मैं ही सबके हृदय में रहता हूँ। मेरे से ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन (संशय आदि दोषों का नाश) होता है। सम्पूर्ण वेदों के द्वारा मैं ही जाननेयोग्य हूँ। वेदों के तत्त्व का निर्णय करने वाला और वेदों को जानने वाला भी मैं हूँ।।15।।

आप जिनके हृदय में विराजमान हैं, वे सब कौन हैं?
इस मनुष्यलोक में क्षर (विनाशी) और अक्षर (अविनाशी) ये दो प्रकार के पुरुष हैं। इनमें सम्पूर्ण प्राणियों के शरीर विनाशी और जीवात्मा अविनाशी कहा जाता है।।16।।

क्षर और अक्षर के सिवाय और भी कोई है?
हाँ, क्षर और अक्षर से अन्य उत्तम पुरुष है, जो संसार में परमात्मा नाम से कहा गया है और जो त्रिलोकी का भरण-पोषण करने वाला अविनाशी ईश्वर है।।17।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः