गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 50

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

पाँचवा अध्याय

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ऐसा होने पर क्या होता है?
कम-क्रोध का वेग उत्पन्न न होने से उसको परमात्मतत्त्व का सुख मिलता है, उसका परमात्मतत्त्व में ही रमण होता है और उसका ज्ञान सदा अलुप्त रहता है। ऐसा वह ब्रह्मस्वरूप् हुआ साधक शान्त ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है।।24।।

उस शान्त ब्रह्म को और कौन प्राप्त होते हैं?
जिनके शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धि वश में हैं, जिनकी सम्पूर्ण प्राणियों के हित में रति है, जिनके मन की सब दुविधाएँ (संशय) मिट गयी हैं और जिनके सब पाप नष्ट हो गये हैं, ऐसे विवेकी साधक निर्वाण ब्रह्म के प्राप्त हो जाते हैं।।25।।

निर्वाण ब्रह्म को प्राप्त होने वालों के क्या लक्षण होते हैं?
वे काम-क्रोध से सर्वथा रहित होते हैं, उनका मन वश में होता है, वे स्वरूप का साक्षात्कार किये हुए होते हैं, ऐसे सांख्ययोगियों को जीते-जी और मरने के बाद निर्वाण ब्रह्म ही प्राप्त होता है।।26।।

यह निर्वाण ब्रह्म किसी दूसरे साधन से भी प्राप्त किया जा सकता है क्या?
हाँ, ध्यानयोग से प्राप्त किया जा सकता है। बाह्य विषयों को बाहर ही छोड़कर अर्थात् सम्पूर्ण विषयों का त्याग करके, नेत्रों की दृष्टि को भौंहों के बीच में स्थित करके और नासिका में विचरने वाले प्राण-अपान को अर्थात् रेचक-पूरक को समान करके, जिसकी इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि अपने वश में हैं ऐसा वह इच्छा भय और क्रोध से रहित मोक्षपरायण साधक सदा मुक्त ही है।।27-28।।

और भी दूसरा कोई सुगम साधन है, जिससे सब सुगमतापूर्वक मुक्त हो जायँ?
हाँ, भक्तियोग है। जो मुझे सम्पूर्ण लोकों का महान् ईश्वर, सम्पूर्ण प्राणियों का परम सुहृद् (स्वार्थरहित दयालु और प्रेमी) तथा सम्पूर्ण यज्ञों और तपों का भोक्ता जान लेता है, दृढ़ता से मान लेता है अर्थात् अपने को कभी भोक्ता नहीं मानता, उसे परमशान्ति की प्राप्ति हो जाती है।।29।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
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अध्याय 18 153

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