गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 100

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

बारहवाँ अध्याय

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और कौन आपका प्यारा है भगवन्?
जो शत्रु-मित्र, मान-अपमान, अनुकूलता-प्रतिकूलता और सुख-दुःख में समता रखने वाला और संसार की आसक्ति से रहित है, जो निन्दा-स्तुति को समान समझने वाला है, जो मननशील है, जो जिस-किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सन्तुष्ट है, जो रहने के स्थान तथा शरीर में भी ममता-आसक्ति से रहित है और जो स्थिर बुद्धिवाला है, ऐसा भक्त मेरे को प्यारा है।[1]।18-19।।

अभी तक तो आपने अपने सिद्ध भक्तों को प्यारा बताया, अब यह बताइये कि आपको अत्यन्त प्यारा कौन है? जो श्रद्धा-प्रेमपूर्वक मेरे परायण हो गये हैं और अभी कहे हुए सिद्ध भक्तों के लक्षणों का रुचिपूर्वक सेवन करने वाले हैं, ऐसे साधक भक्त मेरे को अत्यन्त प्यारे हैं।।20।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. यहाँ तक पाँच प्रकार के सिद्ध भक्तों के लक्षणों का वर्णन हुआ है। पाँचों प्रकार के भक्तों के अलग-अलग लक्षण बताने का तात्पर्य है कि भक्तों के स्वभाव, उनकी साधन-पद्धतियाँ अलग-अलग होती हैं। इसलिये किसी भक्त में मुख्यरूप से कोई लक्षण घटता है तो किसी में कोई लक्षण घटता है; परन्तु संसार के सम्बन्ध का त्याग और भगवान् में प्रेम सबका समान ही होता है।

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