गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 135

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सत्रहवाँ अध्याय

Prev.png

‘ऊँ’ का प्रयोग कहाँ होता है भगवन्?
वैदिक सिद्धान्तों को मानने वाले मनुष्यों की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ, दान और तपरूप क्रियाएँ सदा ‘ऊँ’ का उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं।।24।।

‘तत्’ का प्रयोग कहाँ होता है?
‘तत्’ नाम से कहे जाने वाले परमात्मा के लिये ही सब कुछ है- ऐसा मानकर मुक्ति चाहने वाले मनुष्यों के द्वारा फल की इच्छा से रहित होकर अनेक प्रकार की यज्ञ, तप और दानरूप क्रियाएँ की जाती हैं।।25।।

‘सत्’ का प्रयोग कहाँ होता है?
हे पार्थ! परमात्मा के ‘सत्’ नाम का प्रयोग सत्तामात्र में और श्रेष्ठ भाव में किया जाता है। प्रशंसनीय (श्रेष्ठ) कर्म के साथ भी ‘सत्’ शब्द जोड़ा जाता है। यज्ञ, तप और दान में मनुष्यों की जो स्थिति (निष्ठा, श्रद्धा) है, वह भी ‘सत्’ कही जाती है। कहाँ तक कहा जाय, उस परमात्मा के लिये जो कर्म किया जाता है, वह सब ‘सत्’ कहा जाता है।।26-27।।

‘असत्’ कर्म कौन-से कहे जाते हैं भगवन्?
हे पार्थ! अश्रद्धा से किया हुआ हवन, दिया हुआ दान और तपा हुआ तप तथा और भी जो कुछ किया जाय, वह सब ‘असत्’ कहा जाता है। उनका फल न यहाँ होता है और न मरने के बाद ही होता है अर्थात् उसका कहीं भी सत् फल नहीं होता।।28।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः