गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 130

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सत्रहवाँ अध्याय

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अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्र-विधि को न जानकर श्रद्धापूर्वक यजन-पूजन करते हैं।, उनकी श्रद्धा सात्त्विकी होती है अथवा राजसी या तामसी।।1।।
भगवान् बोले- मनुष्यों की स्वभाव से उत्पन्न होने वाली श्रद्धा सात्त्विकी, राजसी और तामसी-ऐसे तीन प्रकार क होती है।।2।।

वह स्वभावजा श्रद्धा तीन प्रकार की क्यों होती है?
हे भारत! सभी मनुष्यों की श्रद्धा उनके अन्तःकरण के अनुरूप होती है। यह मनुष्य श्रद्धामय है। इसलिये जो जैसी श्रद्धावाला है, वैसा ही उसका स्वरूप है अर्थात् वैसी ही उसकी निष्ठा (स्थिति) है।।3।।

उस श्रद्धा (निष्ठा) की पहचान कैसे हो?
सात्त्विक मनुष्य देवताओं का पूजन करते हैं। राजस मनुष्य यक्ष-राक्षसों का तथा तामस मनुष्य भूत-प्रेतों का पूजन करते हैं।।4।।

अश्रद्धालु मनुष्यों की पहचान क्या है भगवन्?
अश्रद्धालु मनुष्य दम्भ, अहंकार, कामना, आसक्ति और हठ से युक्त होकर शास्त्रविधि से रहित घोर तप करते हैं और अपने पांचभौतिक शरीर को तथा (मेरे से विरुद्ध चल करके) अन्तःकरण में स्थित मेरे को भी कष्ट देते हैं। ऐसे अज्ञानी मनुष्यों को तू आसुर स्वभाव वाले समझ।।5-6।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 8 73
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