गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 117

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

पन्द्रहवाँ अध्याय

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लौटकर संसार में क्यों नहीं आते?
इस शरीर में जीव बना हुआ यह आत्मा (जीवात्मा) सदा से मेरा ही अंश है, इसलिये मेरे को प्राप्त होने पर यह फिर लौटकर संसार में नहीं आता। परन्तु इससे भूल यह होती है कि यह प्रकृति के कार्य इन्द्रियों और मन को अपना मान लेता है।।7।।

इन्द्रियों आदि को अपना मानने से क्या होता है?
वायु जैसे गन्ध के स्थान से गन्ध को ग्रहण करके ले जाती है, ऐसे ही शरीर, इन्द्रियों आदि का मालिक बना हुआ जीवात्मा भी जिस शरीर को छोड़ता है, वहाँ से मनसहित इन्द्रियों को ग्रहण करके फिर जिस शरीर को प्राप्त होता है, उसमें चला जाता है अर्थात् मरता-जन्मता रहता है।।8।।

वह वहाँ क्या करता है भगवन्?
वहाँ वह मन का आश्रय लेकर श्रोत, त्वचा, चक्षु, रसना और नासिका- इन पाँचों इन्द्रियों के द्वारा शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध-इन पाँचों विषयों का रागपूर्वक सेवन करता है।।9।।

रागपूर्वक विषयों का सेवन करने से क्या होता है?
गुणों से युक्त होकर जन्मते-मरते और भोगों को भोगते समय भी यह जीवात्मा स्वरूप से निर्लिप्त ही रहता है- ऐसा रागपूर्वक विषयों का सेवन करने वाले मूढ़ मनुष्य नहीं जानते।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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