मेरे द्वारा बीच में ही प्रश्न करने से आपने जो बातें कहीं, उनको मैंने सुन लिया। मेरे द्वारा प्रश्न करने से पहले आप और क्या कहना चाहते थे भगवन्?
भगवान् बोले- भैया! मैं पहले विज्ञानसहित ज्ञान की बात कह रहा था। वही अत्यन्त गोपनीय विज्ञानसहित ज्ञान दोषदृष्टिरहित तेरे लिये मैं फिर कहूँगा, जिसको जानकर तू जन्म-मरणरूप संसार से मुक्त हो जायगा।।1।।
वह विज्ञानसहित ज्ञान तो बड़ा कठिन होगा?
नहीं भैया, वह विज्ञानसहित ज्ञान सम्पूर्ण विद्याओं का राजा सम्पूर्ण गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्ममय और अविनाशी है तथा करने में (काम में लाने में) बहुत ही सुगम है।।2।।
ऐसी सुगम विद्याओं को सब-के-सब प्राप्त क्यों नहीं कर लेते?
हे परंतप! मनुष्य इस ज्ञान-विज्ञानरूप धर्मपर श्रद्धा-विश्वास नहीं करते, इसलिये वे मेरे को प्राप्त न होकर मौतरूपी संसार के मार्ग में लौटते रहते हैं अर्थात बार-बार जन्मते-मरते रहे हैं।।3।।
वह ज्ञान-विज्ञानरूप धर्म (विद्या) क्या है भगवन्?
मैं अव्यक्तरूप से सम्पूर्ण प्राणियों में हूँ और सम्पूर्ण प्राणी मेरे में हैं तथा मैं सम्पूर्ण प्राणियों में नहीं हूँ और सम्पूर्ण प्राणी मेरे में नहीं हैं अर्थात् जहाँ प्राणियों की स्वतन्त्र सत्ता मानी जाय, वहाँ तो सब प्राणियों में मैं हूँ और सब प्राणी मेरे में हैं, परन्तु जहाँ प्राणियों की स्वतन्त्र सत्ता न मानी जाय, वहाँ मैं प्राणियों में नहीं हूँ और प्राणी मुझमें नहीं हैं; किन्तु सब कुछ मैं-ही-मैं हूँ।
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