गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 129

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

सोलहवाँ अध्याय

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इनका त्याग करने से क्या होगा?
हे कौन्तेय! जो मनुष्य नरक के इन तीनों द्वारों से रहित होकर अपने कल्याण का आचरण करता है अर्थात् जो शास्त्रनिषिद्ध आचरण का त्याग करके केवल अपने कल्याण के उद्देश्य से निष्कामभावपूर्वक विहित आचरण करता है, वह परमगति को प्राप्त हो जाता है।।22।।

परमगति की प्राप्ति किसको नहीं होती?
जो शास्त्रविधि का त्याग करके अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, अर्थात् अपने मन से जिस काम को अच्छा समझता है, वह करता है और जिसको अच्छा नहीं समझता, वह नहीं करता, ऐसे मनुष्य को न तो सिद्धि (अन्तःकरण की शुद्धि) प्राप्त होती है, न सुख प्राप्त होता है और न परमगति ही प्राप्त होती है।।23।।

अच्छे और बुरे काम की पहचान कैसे हो?
कर्तव्य और अकर्तव्य के विषय में शास्त्र ही प्रमाण है- ऐसा जानकर तुझे शास्त्रविधि से नियत किये हुए कर्तव्यकर्म को ही करना चाहिये अर्थात् शास्त्र को सामने रखकर ही हरेक काम करना चाहिये।।24।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 8 73
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अध्याय 10 86
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