गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय
अर्जुन बोले- हे भगवन्! केवल मेरे पर कृपा करने के लिये ही आपने जो परम गोपनीय आध्यात्मिक बात (सबके मूल में मैं हूँ) कही है, उससे मेरा मोह चला गया है। हे कमलनयन! मैंने आपसे सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति और प्रलय की बातें सुनीं तथा आपका अविनाशी माहात्म्य भी विस्तार से सुना।।1-2।। अब तुम और क्या चाहते हो? भगवान् बोले- हे पार्थ! तू मेरे एक रूप को ही क्यों, मेरे सैकड़ों-हजारों रूपों को देख, जो कि दिव्य हैं, अनेक प्रकार के हैं, अनेक रंगों के हैं और अनेक तरह की आकृतियों के हैं।।5।। और क्या देखूँ भगवन्? |